"मध्यकालीन केरल": अवतरणों में अंतर

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== कोलत्तुनाड ==
उत्तरी मलबार को कोलत्तुनाड कहा जाता था । संघमकाल में यह प्रदेश नन्ना राजवंश के अधीन था जिसकी राजधानी एष़िमला थी । नौवीं शती से बारहवीं शती तक उत्तरी मलबार के वयनाड, तलश्शेरि आदि क्षेत्र जब कुलशेखर राजाओं के अधीन थे तब कासरकोड और चिराक्कल क्षेत्र मूषक वंश द्वारा शासित था जिसकी राजधानी एष़िमला के समीप थी । नन्ना राजवंश को मूषक वंश का उत्तराधिकारी कहा जाता है । कतिपय इतिहासकारों के अनुसार मूषक राज्य कुलशेखरों के राज्यकाल में ही एक स्वतंत्र राज्य रहा होगा । बताया जाता है कि कुलशेखर साम्राज्य के पतन के बाद ही मूषक स्वतंत्र राज्य बना था । 14 वीं शताब्दी में कोलत्तुनाड नाम से जो भूभाग विख्यात हुआ वह मूषक राज्य था । राजाओं के लिए कोलत्तिरि (यूरोपियों के अनुसार कोलस्त्री) संबोधन था । संस्कृत में 'कोलम' से तात्पर्य है 'नाव' । कोलत्तिरियों ने नाव को अपना राज्य चिह्न बनाया था । मारको पोलो ने (13 वीं शती) अपने यात्रावृत्त में कोलत्तुनाड को 'एलि राज्य' (मूषिका राज्य) नाम से प्रस्तुत किया है । यही राज्य उत्तर में नेत्रावती नदी से लेकर दक्षिण में कोराप्पुष़ा (नदी) तक तथा पूर्व में कुटक पहाडी से पश्चिम अरब सागर तक फैल गया । कुम्बला, नीलेश्वरम, वटक्कन कोट्टयम, कटत्तनाड इत्यादि क्षेत्र कोलत्तुनाड के अंतर्गत आ गये ।
 
सन् 1725 में फिरंगियों ने मय्यष़ि (माहि) को अपने अधीन कर लिया । 1732 में जब कर्नाटक के इक्कोरिनायकों ने कोलत्तुनाड पर आक्रमण किया तो ब्रिटिशों ने धर्मपट्टणम पर अधिकार जमा कर ही किया था । अरक्कल अलि राजा का निमंत्रण पाकर हैदर अली सेना समेत पहुँचा और सन् 1766 में हैदर अली की सेना ने कोलत्तुनाड पर चढाई की । इस युद्ध में राजा मारा गया । राजपरिवार ने पहले तलश्शेरि (जहाँ ब्रिटिशों का कारखाना और दुर्ग है) में और बाद में तिरुवितांकूर में शरण ली । सन् 1766 में कर देने की व्यवस्था में हैदर अली ने निकटस्थ उत्तराधिकारी को कोलत्तिरि पद पर बिठाया । कोलत्तिरि ने ब्रिटिशों के अधीनस्थ धर्मटम पर आक्रमण (1788) किया और आक्रमण के दौरान वह मारा गया ।
 
मार्च 1792 को जब मलबार ब्रिटिशों के अधीन हो गया तब ब्रिटिशों ने कोलत्तिरि को पेंशन प्रदान की । कोलत्तुनाड के राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त नहीं हो पाया है । कुछ प्रसिद्ध कोलत्तिरियों के जो नाम साहित्यिक कृतियों में आये हैं वे इस प्रकार हैं - राघवन (14 वीं शती), केरल वर्मा (1423 - 1446), रामवर्मा (1443 में मृत्यु), उदय वर्मन (1446 - 1475), रविवर्मा (16 वीं शती) ।
 
18 कृष्णगाथा के रचयिता चेरुश्शेरि उदयवर्मन के आश्रित कवि थे । चेरुश्शेरि ने लिखा है कि उदयवर्मन के आदेशानुसार ही उन्होंने 'कृष्णगाथा' की रचना की थी । 16 वीं शती में जिस समय केरल में पुर्तगलियों का अधिकार जम रहा था उस समय कोलत्तिरि राजवंश सामूतिरि के अधीन था ।
 
17 वीं सदी के अंत तक कोलत्तुनाड के अंतर्गत कई रियासतों का उदय हुआ । इनमें कडत्तुनाड, (वडक्कन) कोट्टयम्, अराक्कल, नीलेश्वरम्, रण्डुतरा आदि प्रमुख थे । कुछ कोलत्तिरि शासकों ने मातृ सत्तात्मक प्रथा का पालन न करके अपने राज्य को अपनी पत्नी तथा संतानों में बाँट दिया । इसी कारण अनेक रियासतें बनीं । कोलत्तिरि राजवंश की विभाजित शाखाएँ निम्नलिखित थीं - पल्लिक्कोविलकम, उदयमंगलम कोविलकम्, चिरक्क्ल कोविलकम् आदि ।
 
1498 में जब वास्को द गामा कोष़िक्कोड से लौटने लगा तो वे कोलत्तिरि से मिले और उनके क्षेत्र में व्यापार का एकाधिकार प्राप्त कर लिया । 1502 में वास्को द गामा जब दुबारा भारत आया तो कोलत्तिरि ने कण्णूर प्रान्त में भण्डार गृह बनवाने की अनुमति दे दी । सन् 1505 में पुर्तगलियों ने कोलत्तिरि से अनुमति लेकर कण्णूर दुर्ग (सेन्ट अंजलो दुर्ग) का निर्माण किया । सामूतिरि के प्रति शत्रुता के कारण कोलत्तिरि ने पुर्तगलियों से अच्छा संबन्ध स्थापित किया । परिणामतः कोलत्तिरि का अरबों के साथ व्यापारिक संबन्ध टूट गया । किन्तु जब उन्होंने देखा कि पुर्तगली अत्याचार कर रहे हैं और लोगों को धर्म परिवर्तन केलिए विवश कर रहे हैं, तो कोलत्तिरि ने सामूतिरि और कुंजालि मरक्कारों से संधि कर ली और पुर्तगलियों के विरुद्ध लड़ने को सन्नद्ध हुए । सन् 1663 में डच्चों ने कण्णूर दुर्ग को अपने अधीन कर कोलत्तुनाड के साथ स्नेह संबन्ध स्थापित किया ।