इस संहिता केमें 40 अध्यायों के अन्तर्गत 1975 कण्डिका जिन्हे प्रचलित स्वरूप में पद्यात्मकमन्त्र मंत्रके औररूप गद्यात्मकमें जाना जाता है। गद्यात्मको मन्त्रं यजु: भागएवं काशेषे संग्रहयजु: शब्द: इस प्रकार के इसके लक्षण प्राय: देखने में आते है। इसके प्रतिपाद्य विषय क्रमश: ये हैं- दर्शपौर्णमास इष्टि (1-2 अ0); अग्न्याधान (3 अ0); सोमयज्ञ (4-8 अ0); वाजपेय (9 अ.); राजसूय (9-10 अ.); अग्निचयन (11-18 अ.) सौत्रामणी (19-21 अ.); अश्वमेघ (22-29 अ.); सर्वमेध (32-33 अ.); शिवसंकल्प उपनिषद् (34 अ.); पितृयज्ञ (35 अ.); प्रवग्र्य यज्ञ या धर्मयज्ञ (36-39 अ.); ईशोपनिषत् (40 अ.)। इस प्रकार यज्ञीय कर्मकांड का संपूर्ण विषय यजुर्वेद के अंतर्गत आता है।