"अमेरिकी क्रान्ति": अवतरणों में अंतर

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इससे पूर्व अमरीका भी [[हिन्दुस्तान]] की तरह अनेक (तेरह) उपनिवेशों में बँटा हुआ था और [[ब्रिटिश राज]] के अधीन था। मुख्यत: अमरीकी क्रान्ति सामाजिक, राजनीतिक व सैनिक क्रान्ति का मिला-जुला परिणाम थी किन्तु सफलता सैनिक क्रान्ति से ही मिली जिसका श्रेय वाशिंगटन को जाता है।
 
==क्रांती के कारण==
 
अमेरिकी स्वतंत्रता क्रांती वास्तव में इतिहास की एक प्रमुख घटना थी। इसने उपनिवेशवाद पर पहला और घातक प्रहार किया। क्रांती के पश्चात उपनिवेशवाद को हटाकर लोकतांत्रिक साम्राज्य की स्थापना की गयी तथा संविधानिक शासन की स्थापना हुई। अनेक इतिहासकार इस संघर्ष को इतिहास का प्रथम क्रांती मानते हैं। इस क्रांती के पिछे अन्य अनेक कारण थे जिसका वर्णन निचे किया जायेगा परंतु इस क्रांती के पिछे हम किसी एक कारण को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते हैं। इसके पिछे अनेक आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक, बौद्धिक, कारण ज़िम्मेदार थे। इसके अतिरिक्त 1763 से 1776 के बीच अनेक अधिनियम ब्रीटिश सरकार द्वारा पारित किये गये जिसका भर्सक प्रतिकार अमेरिकियों ने किया और मांग रखी की प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं।
आज़ादी के लड़ाई के दुर्वर्ती तथा तात्कालिक कारणों ने अमेरिका की क्रांती में महत्वपूर्ण भूमीका निभाई।
इंगलैंड ने आरंभ से ही उनके प्रती ऐसी वाणिज्य नीति चलाई जिससे उसे लाभ हुआ। अमेरिकी उपनिवेशों के प्रती इंगलैंड की प्रारंभिक वाणिज्यिक नीति कतिपय कानूनों पर आधारित थी। जिनमें नववहन कानून, व्यापारिक कानून तथा आयात-निर्यात संबंधी कानून प्रमुख है। ब्रिटेन के संसद ने 1651 इस्वीं में नववहन कानून पास किया। इस कानून के अनूसार ब्रीटिश निर्मित जहाजों में माल ले जाना आवश्यक कर दिया गया इस कानून से उपनिवेशों को काफी आर्थिक क्षती होती थी। कुछ ऐसे वस्तुएं जैसे चावल, तंबाखु, लोहा, लकड़ी, रुआँ, आदी केवल ब्रिटेन ही भेजे जा सकते थे दूसरी जगह नहीं। अपने नियंतरण को और भी कठोर बनाने के लिये ब्रीटिश संसद ने आयात-निर्यात संबंधी कुछ कानून पास किये। सरकार ने 1669 इस्वीं के कानून द्वारा ऊनी माल के निर्यात पर रोक लगादी, 1732 इस्वीं में तोप के निर्यात पर रोक लगादी, 1750 के कानून के तहत उपनिवेशवासी लोहे का छोटा-मोटा माल भी तैयार नहीं कर सकते थे। इस तरह इन कानूनों ने अमेरिका कि जनता के मन में असंतोष की भावना को विकसित किया।
क्रांती के लिये कुछ राजनितिक कारण भी ज़िम्मेदार रहे हैं। अमेरिका के सभी उपनिवेशों पर इंगलैंड की प्रभुता थी। उपनिवेशों के गवर्नर और उनके कौंसिल के सदस्य इंगलैंड के राजा द्वारा मनोनित किये जाते थे। वे स्थानिय व्यवस्थापिका के सामने नहीं वरन्न इंगलैंड के राजा के प्रती उत्तरदायी थे। गवर्नर को निषेधाधिकार भी प्राप्त था। इस तरह उपनिवेशवासियों की व्यवस्थापिका सभा और इंगलैंड की कार्यकारिणी सभा में लगातार संघर्ष होता रहता था। ऐसी परिस्थिती में यह स्वाभाविक था की उपनिवेशवासी एक ऐसी राजनितिक व्यवस्था के संगठन की तिव्र इक्षा प्रकट करे जो उन्हें राजनितिक अधिकारों को प्रदान कर सकें। यह कार्य स्वतंत्रता संग्राम से ही संभव था।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में मध्य वर्ग के उदय ने विषेश योगदान दिया। बहुसंख्यक उपनिवेशवासी मध्य और निम्न वर्ग के लोग थे वे चर्च के अत्याचार से ही पीड़ित होकर युरोप से अमेरिका भाग आये थे। स्वतंत्रता संग्राम तक मध्य वर्ग का सामाजिक और बौद्धिक विकास परियाप्त हो चुका था। वे आरंभ से ही स्वतंत्र विचार के थे।
सप्तवर्षिय युद्ध के परिणामों ने भी अमेरीकी स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया। इस युद्ध में हालांकी इंगलैंड विजय रहा था परंतु युद्ध के कारण उसकी आर्थिक स्थिती काफी खराब हो चुकी थी। इंगलैंड ने अपने युद्ध में हुए धन व्यय की पुर्ती के लिये उपनिवेशों पर टैक्स लगाने का प्रयत्न किया। उसके इस प्रयत्न ने उपनिवेशवासियों की क्रोधाग्नी भड़का दी। जिससे स्वतंत्रता संग्राम अवश्यंभावी हो गया।
त्रितिय जौर्ज (1760 से 1820 इस्वीं) ने इंगलैंड में अपना व्यक्तिगत शासन स्थापित करने के पश्चात शिघ्र ही देश को एक भयंकर युद्ध में झोंक दिया। इसी समय उसके विभिन्न प्रधान मंत्रियों ने अमेरिकी उपनिवेशों पर अनेक तरह के कानूनों को लादने का प्रयास किया। उनके इस प्रयत्न ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को अनिवार्य कर दिया। इसके तात्कालिक कारणों मे प्रधानमंत्री जौर्ज ग्रेनविल के चार कामों ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को आवश्यक कर दिया। ग्रेनविल को जब यह मालुम हुआ की अमेरिकी उपनिवेश से ब्रिटेन को प्रती वर्ष मात्र 2000 पौंड की आय होती है तो उसे संदेह हुआ उसने सोचा की अवश्य ही कहीं गोलमाल हो जाता है। उसने चोर बाज़ारी को रोकने का पूरा प्रयत्न किया। मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार दिया गया की वे चोर बाज़ार की माल को पकड़ने के लिये लोगों की घरों की तलाशि करें। ग्रेनविल के इस कार्य से उपनिवेशवासी क्रोधित हो उठे।
इसके अतिरिक्त 1733 इस्वीं में छोआ कानून पास हुआ था। इसके द्वारा छोया आयात पर बहूत अधिक चुंगी लगा दी गयी थी। ग्रेनविल ने 1760 इस्वीं में एक कानून बनाकर चुंगी को घटा दिया किंतु चुंगी लगाने और वसुलने में बड़ी सतर्कता अपनायी गयी। जिससे चोर बाज़ारी अब असंभव हो गययी। बंदरगाहों पर चुंगी वसुलने के लिये ब्रीटिश करमचारी तैनात किये गये। जो जहाज पर चढ़कर चुंगी वसुलने लगे। उपनेवेशवासी इस तरह के व्यवस्था एवं प्रबंध से असंतुष्ट हो गये।
सप्तवर्षिय युद्ध में इंगलैंड ने पानी की तरह पैसे बहाये थे उसका राष्ट्रिय कर्ज दुगना हो गया था इंगलैंड उपनिवेशियों से बड़ी कड़ाई से पैसा वसुल रहा था किंतु फिर भी स्थिती में सुधार नहीं हुआ। अतेव ग्रेनविल ने सोचा की भविष्य में फ्रांसिसियों और आदिवासियों के आक्रमण से अंगरेजी उपनिवेशों की रक्षा के लिये अमेरिका में कम से कम 10,000 की एक स्थायी सेना रखनी आवश्यक है। उसने यह बतलाया की इस सेना का एक तिहाई खर्च उपनिवेशवासी ही दें। इसी उद्देश्य से इंगलैंड की संसद ने 1765 इस्वीं में स्टांप अधिनियम पास किया। इस कानून के अनूसार अखबार, पुस्तकायें और कानूनी कागज़ात के वैध होने के लिये रसिदी टिकट लगाना आवश्यक कर दिया गया। स्टांप बिकरी से ब्रीटिश सरकार को अच्छी आमदनी की आशा थी। किंतु स्टांप अधिनिमय पास करना जितना आसान था उतना ही ही कठिन उसको लागू करना था। उपनिवेशवासियों ने इसका घोर विरोध करना आरंभ कर दिया। इन लोगों ने प्रतीनिधित्व नहीं तो कर नहीं का नारा बुलंद करना आरंभ कर दिया। यह सत्य भी था क्योंकी ब्रीटिश संसद में उनका कोई प्रतीनिधित्व नहीं था। यह टैक्स अंगरेजों के परंपरागत सिद्धांतों के बिनाः (प्रतिनिधीत्व के बिना कर नहीं लग सकता है) के विरुद्ध था। फलस्वरूप नवउपनिवेशों के प्रतिनिधीयों ने न्युयार्क की कांग्रेस में एकत्र होकर स्टांप अधिनियम के रद्द किये जाने की मांग की।
ग्रेनविल के बाद राकिंघम प्रधानमंत्री बना। उसने देखा की स्टांप अधिनियम ने स्थिती को गंभिर कर दिया है। जहाँ-तहाँ दंगे होने लगे थे अशांती अव्यवस्था फैल गयी थी। गवर्नरों के घर जलाये जाने लगे और कलेक्टरों के पुतले बनाकर उनका उपहास किया जाने लगा। अतेव राकिंघम ने नवउपनिवेशों के प्रतिनिधीयों के स्टांप ऐक्ट को रद्द करने की मांग को स्विकार कर लिया। फलस्वरूप इस अधिनियम को रद्द कर दिया गया। उपनिवेशवासियों ने उसका स्वागत किया। उन्हें कुछ राहत मिली परंतु राकिंघम ने 1766 इस्वीं में ब्रीटिश संसद द्वारा उदघोषणा अधिनियम पास कराया। इस ऐक्ट द्वारा उसने यह दावा किया की ब्रीटिश पार्लमेंट को उपनिवेशों के संबंधी अधिनियम बनाने का अधिकार है। इस तरह के अधिकार का दावा करने का मतलब था उपनिवेशों की स्वतंत्रता पर ठेस लगाना। उपनिवेशवासी इसे बरदास्त करने के लिये तैयार नहीं थे।
बर्डे पिट्ट के प्रधानमंत्रित्व के काल में चाल्सटाउनशेट कोषाध्यक्ष था। उसने चाय शिशा एवं कागज पर आयात चुंगी लगादी। उसने तर्क दिया की यह भितरी नहीं बल्की बाहरी कर थे जो मालों के बंदरगाहों पर लाये जाने की वजह से लगाये जाते हैं। अतेव उपनिवेशों को उसका विरोध नहीं करना चाहिये। ऐसा सोचा गया की इससे प्रतिवर्ष करिब 4,000 पौंड की आय होगी। उस आय को गवर्नरों एवं अन्य अफसरों के वेतन में खर्च किये जाने को था। अभी तक गवर्नरों को वेतन उपनिवेशों की विधायिका सभाएं दे रही थी किंतु उपनिवेशवासियों को ऐसा लगा की यह व्यवस्था उनकी स्वायात्त शासन को समाप्त कर देगी फलस्वरूप उन्होंने इसका विरोध किया।
इसके अतिरिक्त चाय पर कर जारी रखने की चेष्टा ने भी क्रांती के भावना के उदय में महत्वपूर्ण भूमीका निभाई। 1770 इस्वीं में लार्ड नार्थ प्रधानमंत्री बना। उसने अपनी प्रधानमंत्रीत्व में सिसा, कागज रंग आदी से चुंगी हटा दी। उसने सिर्फ चाय पर चुंगी रहने दी। ऐसा इसलिये की वह यह दिखा सके की इंगलैंड को उपनिवेशों पर कर लगाने का अधिकार है। यह चाय चुंगी सिर्फ नाम मात्र की थी। एक पौंड चाय के लिये सिर्फ 3 पैंस देने पड़ते थे। किंतु उपनिवेशवासियों ने इसका भी विरोध किया।
1770 से 1773 के बीच तीन छोटी-छोटी उत्तेजनात्मक दुर्घटनाएं घटी। जिनके फलस्वरूप उपनिवेशवासी और इंगलैंड में मनमोटाव और बढ़ गया तथा जिसने क्रांती को अवश्यंभावी कर दिया। पहली घटना बोस्टन में हुई। बोस्टन शहर के नागरिक ब्रीटिश छावनियों पर हमला करने लगे अंगरेज सिपाहियों ने दंगा करने वालों पर गोलियाँ चलाई। सिर्फ थोड़े आदमी मारे गये परंतु इस घटना से उपनिवेशवासी बहूत ही उत्तेजित हो गये। उसी समय 1772 इस्वीं में अमेरिका में चोर बाजारी रोकने के लिये एक शाही अंगरेजी जहाज भेजा गया। उपनिवेशवासीयों ने इसे जला डाला। इसके उपलक्ष में सभी जगह खुशियाँ मनाई गयी। तीसरी तथा प्रमुख घटना बोस्टन टीपाटी की घटना थी जिसने क्रांती को अनिवार्य कर दिया। चाय कानून तथा इस्ट इंडिया कंपनी को भारत से सिधे अमेरिका चाय बेचने के लिये अनुमती दे दी गयी। ऐसा इसलिये किया गया जिससे कंपनी की बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिती सुधर जाये तथा चाय सस्ती होने के कारण उपनिवेशवासीयों को भी लाभ हो परंतु स्वतंत्रता संग्राम के उग्रपंथियों ने इसे ब्रीटिश सरकार की एक चाल समझा। अतेव बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किये जाने लगे। चब बोस्टन बंदरगाह में इस्ट इंडिया कंपनी चाय लिये पहुँचा तो कुछ लोगों ने वहाँ के मूलनिवासियों के वेश में जहाज में प्रवेश कर चाय के 343 बक्सों को समुद्र में फेंक दिया। इस घटना को बोस्टन टिपाटी की घटना के नाम से जाना जाता है.
बोस्टन टीपाटी की घटना ने इंगलैंड में बड़ी सनसनी फैलादी। सरकार सजग हो गयी ब्रीटिश संसद ने उपनिवेशों में शांती स्थापित करने के लिये बहूत दमनकारी कानून पास किये। बोस्टन बंदरगाह व्यापार के लिये बंद कर दिया गया। वहाँ काम करने वाले हजारों मजदुर बेकार हो गये। मेसाच्युसेटस को राजनितिक स्वाराज्य में ले लिया गया। बेज़ नामक सैनिक को वहाँ का गवर्नर न्युक्त किया गया। उसकी सहायता के लिये सेना भेजी गयी। एक आदेश निकालकर यह बतलाया गया की बिना गवर्नर की अनुमती लिये कोई आमसभा नहीं कर सकता। मेसाच्युसेटस के राजनितिक अधिकार ले लेने से जारजिया को छोड़कर अन्य दूसरे उपनिवेशों ने मेसाच्युसेटस का पक्ष लिया। इन उपनिवेशों की एक सभा फिलाडेलफिया शहर में बैठी। इस सभा में कांग्रेस ने अधिकारों का एक घोषणापत्र तैयार किया। इस घोषणापत्र के संविदा को तैयार करने वाला टौमस जेफरसन था। 4 जुळाई सन् 1776 को अमेरिकी जनता के सामने ही नहीं बल्की संसार के सामने यह कहा गया (हम संयुक्त राज्य के एकत्रित प्रतिनिधी यह निर्णय लेते हैं की ये संयुक्त उपनिवेश स्वतंत्र है तथा इन्हें स्वतंत्र होना चाहिये। उनका ब्रिटेन के साथ कोई संबंध नहीं है तथा ब्रिटेन के साथ अब कोई स्वामीभक्ती प्रदर्शित करने की आवश्यक्ता नहीं है। उपनिवेशों का ब्रिटेन के साथ सभी राजनितिक संबंधों का विक्षेद आवश्यक है।)
 
एक ओर जहाँ इंगलैंड की सरकार उपनिवेशवासियों पर अपना अधिकार जमाने के लिये प्रयत्नशिल थी। वहीं दूसरी ओर उपनिवेशवासी अपने अदम्य उत्साह एवँ प्रतिभा से अपने को स्वतंत्र घोषित करने पर तुले हुए थे। अंगरेजी सरकार की कार्यवाहीयों का विरोध करने के लिये कअई संस्थाएं स्थापित की गयी। इन संस्थाओं में स्वाधिनता के पुत्र एवं स्वाधिनता की पुत्रियाँ विषेश उल्लेखनिय है। इन जनप्रिय संस्थाओं ने अंगरेजी सरकार के विरुद्ध काफी प्रचार किया। इससे लोगों में बौद्धिक जागृती हुई। जनसाधारण में स्वतंत्रता की भावना को उभारने एवं जिवन को एक नवसंदेश देने वालों में सैमुल ऐडम्स का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। वह एक व्यवहारिक पुरूष था। 1761 से 1776 इस्वीं तक ऐडम्स ने अखबार बैठकों और कमिटियों द्वारा अपनी प्रचार कार्य को जारी रखा। उसने अपने लेखों में वर्णित किया की इंगलैंड एक जोंख के समान है जो उपनिवेशवासियों का खुन चुस रहा है। इंगलैंड उन्हें दास्ता दरिद्रता और दुँख के धधकते दावानल में धँसाना चाहता है। ऐडम्स ने अपने विचारों का प्रचार तब तक किया जब तक लोगों के दिमाग में यह बात बैठ नहीं गयी की वे वास्तव में गुलामी तथा अत्याचार के शिकार है। संग्राम छिड़ने के बाद ही टौमस्पेन नामक एक प्रसिद्ध विचारक ने कौमन सेंस नामक एक पुस्तक जनवरी 1776 इस्वीं में निकाली। इसमें उसने यह बतलाया की लोग अब अत्याचार को पंगु बना दें। यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हो गयी की इसकी लाख प्रतियाँ कुछ ही महिनों में प्रत्येक व्यस्क के हाथ आ गयी। लोग बड़े उत्साहित हुए तथा दमनकारी सरकार के विरुद्ध वे आवाजें कसने के लिये तैयार हो गये। परिणामस्वरुप युद्ध आरंभ हो गया देशभक्तों ने नारा दिया (((((मुझे मृत्युव दो या स्वतंत्रता दो)) )
इंगलैंड से आये अनेक असंतुष्ट धार्मिक प्रचारकों ने भी इस क्रांती के लिये महत्वपूर्ण भूमीका निभाई। वे धार्मिक यंत्रणाओं से इंगलैंड एवं अन्य जगहों से भागकर अमेरिका आये थे। उनमें एक अपनी सरकार, अपनी शासन व्यवस्था, और अपना संविधान तैयार करने की भावना पहले से ही काम कर रही थी।
 
 
इन विस्त्रित वर्णन के आधार पर हम निशकर्ष के रूप में यही कह सकते हैं की अमेरिकी क्रांती के लिये तात्कालिक तथा दुरगामी दोनों ही कारणों ने महत्वपूर्ण भूमीका निभाई परिणामस्वरूप अमेरिका को स्वतंत्रता मिली और विश्व के सामने गणतांत्रिक शासन पद्धती का प्रथम आगमन हुआ। क्रांती को सफल बनाने में समस्त अमेरिकी जनता, बुद्धिजिवी वर्ग, मध्य वर्ग जिसके अंतरगत शिल्पियों कारीगरों व्यापारियों तथा किसानों आदी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया परिणामस्वरूप 1783 में एक संधी के अनूसार ब्रिटेन ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को स्वतंत्रता प्रदान करदी।
 
 
== इन्हें भी देखें ==