"कृष्णदेवराय": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Vijayanagara.jpg|right|thumb|300px|कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा]]
[[चित्र:View of dilapidated main mantapa at the Vitthala templein Hampi.jpg|right|thumb|300px||संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर ; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए।]]
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'''कृष्णदेवराय''' (1509-1529 ई. ; राज्यकाल 1509-1529 ई)) [[विजयनगर]] के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा।
 
== परिचय ==
जिन दिनों वे सिंहासन पर बैठे उस समय दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति डाँवाडोल थी। पुर्तगाली पश्चिमी तट पर आ चुके थे। [[कांची]] के आसपास का प्रदेश उत्तमत्तूर के राजा के हाथ में था। [[उड़ीसा]] के [[गजपति नरेश]] ने [[उदयगिरि]] से [[नेल्लोर]] तक के प्रांत को अधिकृत कर लिया था। [[बहमनी]] राज्य अवसर मिलते ही विजयनगर पर आक्रमण करने की ताक में था।
<ref>A Social History of the Deccan, 1300-1761: Eight Indian Lives, by Richard M. Eaton p.90</ref> <ref>A Social History of the Deccan, 1300-1761: Eight Indian Lives, by Richard M. Eaton p.88</ref>
 
कृष्णदेवराय ने इस स्थिति का अच्छी तरह सामना किया। दक्षिण की राजनीति के प्रत्येक पक्ष को समझनेवाले और राज्यप्रबंध में अत्यंत कुशल श्री अप्पाजी को उन्होंने अपना प्रधान मंत्री बनाया। उत्तमत्तूर के राजा ने हारकर शिवसमुद्रम के दुर्ग में शरण ली। किंतु [[कावेरी नदी]] उसके द्वीपदुर्ग की रक्षा न कर सकी। कृष्णदेवराय ने नदी का बहाव बदलकर [[दुर्ग]] को जीत लिया। बहमनी सुल्तान महमूदशाह को उन्होंने बुरी तरह परास्त किया। रायचूड़, गुलबर्ग और बीदर आदि दुर्गों पर विजयनगर की ध्वजा फहराने लगी। किंतु प्राचीन हिंदु राजाओं के आदर्श के अनुसार महमूदशाह को फिर से उसका राज लौटा दिया और इस प्रकार यवन राज्य स्थापनाचार्य की उपाधि धारण की। 1513 ई. में उन्होंने उड़ीसा पर आक्रमण किया और उदयगिरि के प्रसिद्ध दुर्ग को जीता। कोंडविडु के दुर्ग से राजकुमर वीरभद्र ने कृष्णदेवराय का प्रतिरोध करने की चेष्टा की पर सफल न हो सका। उक्त दुर्ग के पतन के साथ कृष्ण तक का तटीय प्रदेश विजयनगर राज्य में सम्मिलित हो गया। उन्होंने कृष्णा के उत्तर का भी बहुत सा प्रदेश जीता। 1519 ई. में विवश होकर गजपति नरेश को कृष्णदेवराय से अपनी कन्या का विवाह करना पड़ा। कृष्णदेवराय ने कृष्णा से उत्तर का प्रदेश गजपति को वापस कर दिया। जीवन के अंतिम दिनों में कृष्णदेवराय को अनेक विद्रोहों का सामना करना पड़ा। उसके पुत्र तिरु मल की विष द्वारा मृत्यु हुई।
 
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==सन्दर्भ==
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