"दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (भारत)": अवतरणों में अंतर

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==कुछ प्रमुख धारायें==
* ''' धारा 41 बी''' : गिरफ्तारी की प्रक्रिया तथा गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के कर्तव्य
* धारा १०६ से १२४ तक''' : ये धारायें दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8 में 'परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति' शीर्षक से दी गयी हैं, जिसमें 107/116 धारा परिशान्ति के भंग होने की दशा में लागू होती है। धारा 107 के अनुसार, जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना मिले कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा संदोष कार्य करेगा, जिससे सम्भवत: परिशान्ति भंग हो जाएगी या लोकप्रशान्ति विक्षुब्ध हो जाएगी, तब वह मजिस्ट्रेट यदि उसकी राय में कार्यवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबन्धित रीति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करें कि एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए उसे (प्रतिभुओं सहित या रहित) बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाय।<ref>[www.swatantraawaz.com/news/154.htm क्या होती है 107/116/151 दण्ड प्रक्रिया संहिता?]</ref>
 
* '''धारा 41 डी''' : के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तथा पुलिस द्वारा उससे परिप्रश्न किये जाते है, तो परिप्रशनों के दौरान उसे अपने पंसद के [[अधिवक्ता]] से मिलने का हक होगा, पूरे परिप्रश्नों के दौरान नहीं।
 
* '''धारा 46''' : गिरफ्तारी कैसे की जायेगी
 
* '''धारा 51''' : गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी
 
* '''धारा 52''' : आक्रामक आयधु का अभिग्रहण - गिरफ्तार व्यक्ति के पास यदि कोई आक्रामक आयुध पाये जाते है तो उन्हें अभिग्रहित करने के प्रावधान है।
 
* '''धारा 55 ए''' : इसके अनुसार अभियुकत की अभिरक्षा रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह अभियुक्त के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की युक्तियुक्त देख-रेख करे ।
 
* '''धारा 58''' : इस धारा के अनुसार पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी जिला मजिस्टेट को या उसके ऐसे निर्देश देने पर उपखण्ड मजिस्टेट को, अपने अपने थाने की सीमाओं के भीतर वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये अये सब व्यक्तियों कें मामले के रिपोर्ट करेंगे चाहे उन व्यक्तियों की जमानत ले ली गई हो या नहीं।
 
* '''धारा १०६ से १२४ तक''' : ये धारायें दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8 में 'परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति' शीर्षक से दी गयी हैं, जिसमें 107/116 धारा परिशान्ति के भंग होने की दशा में लागू होती है। धारा 107 के अनुसार, जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना मिले कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा संदोष कार्य करेगा, जिससे सम्भवत: परिशान्ति भंग हो जाएगी या लोकप्रशान्ति विक्षुब्ध हो जाएगी, तब वह मजिस्ट्रेट यदि उसकी राय में कार्यवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबन्धित रीति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करें कि एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए उसे (प्रतिभुओं सहित या रहित) बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाय।<ref>[www.swatantraawaz.com/news/154.htm क्या होती है 107/116/151 दण्ड प्रक्रिया संहिता?]</ref>
 
* '''धारा 108''' : राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति
 
* '''धारा 109''' : संदिग्ध और आवारा-गर्द व्यक्तियों से अच्छे व्यवहार के लिए जमानत
 
* '''धारा १४४''' : यह धारा शांति व्यवस्था कायम करने के लिए लगाई जाती है। इस धारा को लागू करने के लिए जिलाधिकारी एक नोटिफिकेशन जारी करता है और जिस जगह भी यह धारा लगाई जाती है, वहां चार या उससे ज्यादा लोग इकट्ठे नहीं हो सकते हैं। इस धारा को लागू किए जाने के बाद उस स्थान पर हथियारों के लाने ले जाने पर भी रोक लगा दी जाती है। धारा-144 का उल्लंघन करने वाले या इस धारा का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। उस व्यक्ति की गिरफ्तारी धारा-107 या फिर धारा-151 के अधीन की जा सकती है। इस धारा का उल्लंघन करने वाले या पालन नहीं करने के आरोपी को एक साल कैद की सजा भी हो सकती है। वैसे यह एक जमानती अपराध है, इसमें जमानत हो जाती है।
 
* '''धारा १५१''' : यह धारा अध्याय ११ में 'पुलिस की निवारक शक्ति' में है। यह धारा [[संज्ञेय अपराध|संज्ञेय अपराधों]] के किये जाने से रोकने हेतु गिरफ्तार कर अपराध की गम्‍भीरता को रोकती है और पक्षों को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है।