"वित्‍तीय प्रबंधन": अवतरणों में अंतर

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* '''वित्त प्राप्ति की व्यवस्था''' : वित्तीय प्रबन्धन का प्रमुख कार्य संगठन के प्रस्तावित पूंजी ढांचे के अनुरूप विभिन्न श्रोतों से व्यवसाय संचालन हेतु अपेक्षित पूंजी की व्यवस्था करना होता है।
 
* '''वित्त कार्य का प्रशासन''' : इसके अन्तर्गत वित्तीयप्रबन्धन द्वारा वित्त विभाग एवं उवविभागों का संगठन, कोषाध्यक्ष तथा नियंत्रक के कार्यों, दायित्वों एवं अधिकारों का निर्धारण एवं लेखा पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती है। वित्तीय प्रबन्ध सम्पत्तियों के प्रभाव पूर्ण उपयोग एवं प्रबंधन हेतु भी उत्तरदायी होता है।स्थिर सम्पत्तियों (fixed assets) के क्रय सम्बन्धी वित्तीय पहलुओं पर उचित परामर्श के साथ-साथ चल सम्पत्तियों (current assets) की समयानुकूल आपूर्ति सुनिश्चित करना भी वित्तीय प्रबन्धन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित होता है। वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रशासन का प्रमुख अंग है। वित्तीय प्रबन्ध द्वारा वित्तीय नियन्त्रण के माध्यम से ही व्यावसायिक लक्ष्यों की पूर्ति (अधिकतम लाभार्जन) की जा सकती है। वित्तीय नियंत्रण की स्थापना हेतु पूॅंजीबजटिंग, रोकड़ बजट, तथा लोचपूर्ण बजटिंग नामक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
 
वित्तीय प्रबन्ध सम्पत्तियों के प्रभाव पूर्ण उपयोग एवं प्रबंधन हेतु भी उत्तरदायी होता है।स्थिर सम्पत्तियों (fixed assets) के क्रय सम्बन्धी वित्तीय पहलुओं पर उचित परामर्श के साथ-साथ चल सम्पत्तियों (current assets) की समयानुकूल आपूर्ति सुनिश्चित करना भी वित्तीय प्रबन्धन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित होता है।
 
वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रशासन का प्रमुख अंग है। वित्तीय प्रबन्ध द्वारा वित्तीय नियन्त्रण के माध्यम से ही व्यावसायिक लक्ष्यों की पूर्ति (अधिकतम लाभार्जन) की जा सकती है। वित्तीय नियंत्रण की स्थापना हेतु पूॅंजीबजटिंग, रोकड़ बजट, तथा लोचपूर्ण बजटिंग नामक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
 
* '''शुद्ध लाभ का आवंटन''' (Allocation of Net Profit) : लाभॉंश नीति का निर्धारण वित्तीय प्रबन्धक का प्रमुख कार्य होता है। शुद्ध लाभ का कितना भाग अंशधारकों के मध्य वितरित किया जाय तथा कितना भाग संचित कोषों के रूप में रोक (retain) लिया जाय, जिसका प्रयोग संगठन के विकास, सम्वर्धन एवं लाभदेयकता में वृद्धि हेतु किया जा सके। इस निर्णय का सीधा प्रभाव अंशों के भावी बाजार मूल्यों पर पड़ता है। यदि हम समस्त शुद्ध लाभ के अधिकांश भाग को अंशधारकों के मध्य विभाजन का निर्णय लेते हैं तो अल्पकाल में अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि स्वाभाविक है किन्तु संगठन के विकास की भावी योजनाओं को क्रियान्वित नहीं किया जा सकेगा, तथा दीर्घ काल में संगठन की लाभदेयकता प्रभावित हो सकती है। इसके विपरीत यदि वित्तीय प्रबंधक समस्त लाभों या लाभ के अधिकांश भाग को प्रतिधारित (retain) करता है। तो अंशों का बाजार मूल्य अत्यन्त कम हो सकता है। परिणाम स्वरूप भविष्य में पूंजी संग्रहण की कठिनाई आ सकती है अतः लाभों के आवंटन में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका पर संगठन का भावी विकास एवं अंशों का बाजार मूल्य प्रभावित होता है।