"सरस्वती पत्रिका": अवतरणों में अंतर
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'''सरस्वती''' [[हिन्दी साहित्य]] की प्रसिद्ध रूपगुणसम्पन्न प्रतिनिधि [[पत्रिका]] थी। इस पत्रिका का प्रकाशन [[इलाहाबाद]] से सन [[
महवीर प्रसाद द्विवेदी के बाद [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]], [[देवी दत्त शुक्ल]], [[श्रीनाथ सिंह]], [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]], [[देवीलाल चतुर्वेदी]] और [[श्रीनारायण चतुर्वेदी]] सम्पादक हुए। [[१९०५]] ई० में काशी [[नागरी प्रचारिणी सभा]] का नाम मुखपृष्ठ से हट गया।
1903 में [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है :
:''हमारी भाषा हिंदी है। उसके प्रचार के लिए गवर्नमेंट जो कुछ कर रही है, सो तो कर ही रही है, हमें चाहिए कि हम अपने घरों का अज्ञान तिमिर दूर करने और अपना ज्ञानबल बढ़ाने के लिए इस पुण्यकार्य में लग जाएं।''
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था।
१९७० के दशक में इसका प्रकाशन बन्द हो गया।
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