"जगन्नाथदास रत्नाकर": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
'''जगन्नाथदास रत्नाकर''' (सं.१८६६ १९२३- वि. - सं.२१ १९८९जून वि.१९३२) आधुनिक युग के श्रेष्ठ [[ब्रजभाषा]] कवि थे।
 
== परिचय ==
पंक्ति 6:
रत्नाकर जी ने अपनी आजीविका के हेतु 30-32 वर्ष की अवस्था में जरदेजी का काम आरंभ किया था। उसके उपरांत ये आवागढ़ रियासत में कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुए। भारतेंदु जी के संपर्क और काशी की कविगोष्ठियों के प्रभाव से इन्होंने 1889 ई. में ब्रजभाषा में रचना करना आरंभ किया। रत्नाकर जी की सर्वप्रथम काव्यकृति 'हिंडोला' सन्‌ 1894 ई. में प्रकाशित हुई। सन्‌ 1893 में 'साहित्य सुधा निधि' नामक मासिक पत्र का संपादन प्रारंभ किया तथा अनेक ग्रंथों का संपादन भी किया जिनमें दूलह कवि कृत कंठाभरण, कृपारामकृत 'हिततरंगिणी' चंद्रशेखरकृत 'नखशिख' हैं। [[नागरीप्रचारिणी सभा]] के कार्यों में रत्नाकर जी का पूरा सहयोग रहता था। सन्‌ 1897 में रत्नाकर जी ने घनाक्षरी नियम रत्नाकर प्रकाशित कराया और 1898 में 'समालोचनादर्श' ([[अलेक्ज़ंडर पोप|पोप]] के 'एस्से ऑन क्रिटिसिज्म' का अनुवाद) प्रकाशित हुआ।
 
सन्‌ 1902 के उपरांत ये [[अयोध्या]]नरेश राजा प्रतापनारायण सिह के यहाँ प्राइवेट सेक्रेटरी (निजी सचिव) के रूप में काम करते रहे और अंतिम समय तक इनका संबंध अयोध्या दरबार से रहा। इस बीच इन्होंने 'बिहारी रत्नाकर' नाम से बिहारी सतसई का संपादन किया। 14 मई सन्‌ 1921 ई. से अयोध्या की महारानी की प्रेरणा से इन्होंने 'गंगावतरण' काव्य की रचना प्रारंभ की, जो सन्‌ 1923 में समाप्त हुई। इसी समय 'उद्धवशतक' का भी रचनाकार्य चलता रहा। हरिद्वार यात्रा में एक बार इनकी पेटी खो गई जिससे 'उद्धव शतक' के सौ सवा सौ छंद चोरी चले गए। पर रत्नाकर जी ने अपनी स्मृति से उन्हें फिर लिख डाला। '[[उद्धव शतक]]' इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है। ये सन्‌ 1926 में औरियंटल कांफरेंस के हिंदी विभाग के सभापति हुए और सन्‌ 1930 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के बीसवें अधिवेशन के सभापति चुने गए। इस अधिवेशन का सभापतित्व इन्होंने राजसी ठाटबाट के साथ किया। सन्‌ 1932 ई. की 21 जून को इनका अचानक स्वर्गवास हो गया।
 
रत्नाकर जी केवल कवि ही नहीं थे, वरन्‌ वे अनेक भाषाओं (संस्कृत, प्राकृत, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी) के ज्ञाता तथा विद्वान्‌ भी थे। उनकी कविप्रतिभा जैसी आश्चर्यकारी थी, वैसी ही किसी छंद की व्याख्या करने की क्षमता भी विलक्षण थी। अनेक विद्वानों ने रत्नाकर जी की टीकाओं की प्रशंसा की है।
 
रत्नाकर जी का ब्रजभाषा पर अद्भुत अधिकार था और उनकी प्रसिद्ध ्व्राजभाषाब्रजभाषा रचनाओं में सुंदर प्रयोगों एवं ठेठ शब्दावली का व्यवहार हुआ है। रत्नाकर जी स्वच्छ कल्पना के कवि हैं। उसके द्वारा प्रस्तुत दृश्यावली सदैव अनुभूति सनी है और संवेदना को जाग्रत करनेवाली है।
 
== रत्नाकर जी की रचनाएँ ==
=== पद्य ===
हरिश्चंद्र (खंडकाव्य) गंगावतरण (पुराख्यान काव्य), उद्धवशतक (प्रबंध काव्य), हिंडोला (मुक्तक), कलकाशी (मुक्तक) समालोचनादर्श (पद्यनिबंध) श्रृंगारलहरी, गंगालहरी, विष्णुलहरी (मुक्तक), रत्नाष्टक (मुक्तक), वीराष्टक (मुक्तक), प्रकीर्णक पद्यावली (मुक्तक संग्रह)।
himanshu srivastava
 
=== गद्य ===