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ब्रह्म वैवर्त पुराण की संक्षिप्त जानकारी

ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवां पुराण है। व्यासजी ने ब्रह्मवैवर्त पुराण के चार भाग किये हैं ब्रह्म खण्ड,प्रकृति खण्ड,गणेश खण्ड, और श्रीकृष्ण खण्ड। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। उसमे सूत और महऋषियों के संवाद में पुराण उपक्रम है। उसमें पहला प्रकरण सृष्टिवर्णन का है। फ़िर नारद और ब्रह्माजी के विवाद का वर्णन है। जिससे दोनों का पराभव हुआ बताया गया है। नारदजी का शिवलोक गमन और और शिवजी से नारद को ज्ञान की प्राप्ति का वर्णन है,उसके बाद शिवजी के कहने से ज्ञान लाभ के लिये सावर्णि के सिद्धसेवित आश्रम में जो पुण्यमय तथा त्रिलोकी को आश्चर्य में डालने वाला था का वर्णन है। इसके बाद नारद और सावर्णि का संवाद का वर्णन है,जिसके अन्दर श्रीकृष्ण का आख्यान और कथायें हैं। प्रकृति की अंशभूत कलाओं के माहत्म्य और पूजन आदिक का विस्तारपूर्वक यथावत वर्णन किया गया है। प्रकृति खण्ड का श्रवण करने पर सुखों की प्राप्ति का आख्यान मिलता है। गणेश खण्ड के वर्णन के विषय में पार्वतीजी के द्वारा कार्तिकेय और गणेश की उत्पत्ति के विषय आख्यान मिलता है। इसके अन्दर ही कार्तवीर्यार्जुन और जमदग्निनन्दन और परशुरामजी में जो महान विवाद हुआ था उसका उल्लेख किया गया है। इसके बाद श्रीकृष्ण जन्म के विषय में कथा का उल्लेख मिलता है।