"शृंगार रस": अवतरणों में अंतर
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शारदातनय (13वीं शती) ने इच्छा तथा उत्कंठा को जोड़कर तथा विद्यानाथ (14वीं शती पूर्वार्ध) ने स्मरण के स्थान पर संकल्प लाकर और प्रलाप तथा संज्वर को बढ़ाकर इनकी संख्या 12 मानी है। यह युक्तियुक्त नहीं है और इनका अंतर्भाव हो सकता है। मान-विप्रलंभ प्रणय तथा ईष्र्या के विचार से दो प्रकार का तथा मान की स्थिरता तथा अपराध की गंभीरता के विचार से लघु, मध्यम तथा गुरु नाम से तीन प्रकार का, प्रवासविप्रलंभ कार्यज, शापज, सँभ्रमज नाम से तीन प्रकार का और कार्यज के यस्यत्प्रवास या भविष्यत् गच्छत्प्रवास या वर्तमान तथा गतप्रवास या भविष्यत् गच्छत्प्रवास या वर्तमान तथा गतप्रवास या भूतप्रवास, शापज के ताद्रूप्य तथा वैरूप्य, तथा संभ्रमज के उत्पात, वात, दिव्य, मानुष तथा परचक्रादि भेद के कारण कई प्रकार का होता है। विरह गुरुजनादि की समीपता के कारण पास रहकर भी नायिका तथा नायक के संयोग के होने का तथा करुण विप्रलंभ मृत्यु के अनंतर भी पुनर्जीवन द्वारा मिलन की आशा बनी रहनेवाले वियोग को कहते हैं। श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिकालंकार, ऋतु तथा प्रकृति का भी वर्णन किया जाता है।
==सन्दर्भ==
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