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'सोरों शूकरक्षेत्र' उत्तर प्रदेश में जनपद- कासगंज से 15 किमी० दूर एक प्राचीन तीर्थस्थल है। प्राची...
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'''सोरों शूकरक्षेत्र'''[[ उत्तर प्रदेश]] में [[जनपद- कासगंज]] से 915 मीलकिमी० दूर एक प्राचीन शूकरक्षेत्रतीर्थस्थल है। प्राचीन समय में सोरों शूकरक्षेत्र को "सोरेय्य" नाम से भी जाना जाता था। सोरों शूकरक्षेत्र के प्राचीन नाम "सोरेय्य" का उल्लेख पाली साहित्य में भी है।
 
पहले सोरों शूकरक्षेत्र के निकट ही गंगा बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है। पुरानी धारा के तट पर अनेक प्राचीन मन्दिर स्थित हैं। कहायह जाताभूमि हैभगवान् विष्णु के तृतीयावतार भगवान् वाराह की मोक्षभूमि एवं श्रीरामचरितमानस के रचनाकार महाकवि गोस्वामी [[तुलसीदास]] जी तथा अष्टछाप के कवि नन्ददास जी की जन्मभूमि भी है। तुलसीदास जी ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास जी से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी। उनके भ्राता नन्ददास जी द्वारा स्थापित बलदेव का मन्दिर सोरों शूकरक्षेत्र का प्राचीन स्मारकमन्दिर है। पौराणिक गृद्धवट यहाँ स्थित है। श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की 23 वीं बैठक है। यहाँ हरि की पौड़ी में विसर्जित की गयीं अस्थियाँ तीन दिन के अन्त में रेणु रूप धारण कर लेती हैं, ऐसा आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ भगवान् वाराह का विशाल प्राचीन मन्दिर है। मार्गशीर्ष मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है।
 
[[भागीरथी गंगा]] नदी के तट पर एक प्राचीन स्तूप के खण्डहर भी मिले हैं, जिनमें सीता-राम के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा बेन ने करवाया था।
प्राचीन मन्दिर काफ़ी विशाल था, जैसा कि उसकी प्राचीन भित्तियों की गहरी नींव से प्रतीत होता है। अनेक प्राचीन अभिलेख भी इस मन्दिर पर उत्कीर्ण हैं, जिनमें सर्वप्राचीन अभिलेख 1226 विक्रम सम्वत=1169 ई. का है।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सोरों" से प्राप्त