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'''माहेश्वर सूत्र''' ([[संस्कृत]]: '''{{lang|sa|शिवसूत्राणि}}''' या '''महेश्वर सूत्राणि''') को [[संस्कृत व्याकरण]] का आधार माना जाता है। [[पाणिनि]] ने [[संस्कृत भाषा]] के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिङ्ग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश [[अष्टाध्यायी]] में किया है। अष्टाध्यायी में ३२ पाद हैं जो आठ अध्यायों मे समान रूप से विभक्त हैं <br />
[[व्याकरण]] के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन करीबलगभग ४००० [[सूत्र|सूत्रों]] में किया है , जो आठ अध्यायों मेमें (संख्या की दृष्टि से असमान रूप से) विभाजित हैं, किया है।हैं। तत्कालीन समाज मे लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता केको ध्यान में रखते हुए मद्देनज़र पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए [[सूत्र]] शैली की सहायता ली है। पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे '''शिवसूत्र''' या '''माहेश्वर सूत्र''' सबसे महत्वपूर्ण हैं।
 
== उत्पत्ति ==