"कार्ल मार्क्स": अवतरणों में अंतर

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मेहनतकशों की तहरीक में एक नए तूफ़ान की पेशबीनी करते हुए मार्क्स ने कोशिश की कि अपनी अर्थशास्त्रीय रचनाएँ करने की रफ़्तार तेज़ कर दे। अठारह माह की ताख़ीर के बाद जब उस ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन का फिर से आग़ाज़ किया तो उस ने इस रचना को अज नए सिरे से तर्तीब देने का फ़ैसला किया। और उस को 1859 में प्रकाशित ''जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी'' में हिस्से के रूप में ना छापा जाये, बल्कि ये एक अलग किताब हो। 1862 में उस ने ईल कजलमीन को मतला किया कि इस का नाम ''द कैपिटल'' और तहती नाम ''राजनीतिक अर्थव्यवस्था की आलोचना'' होगा। द कैपिटल इंतिहाई मुश्किल हालात में लिखी गई। अमरीकी ख़ानाजंगी की वजह से मार्क्स अपनी आमदनी का बड़ा ज़रीया खो चुका था। अब वो न्यूयार्क के रोज़नामा द ट्रिब्यून के लिए नहीं लिख सकता था। उस के बाल बच्चों के लिए इंतिहाई मुश्किलों का ज़माना फिर आ गया। ऐसी सूरत-ए-हाल में अगर एंगलज़ की तरफ़ से मुतवातिर और बेग़रज़ माली इमदाद ना मिलती तो मार्क्स कैपिटल की तकमील ना कर सकता।
कैपिटल में कार्ल मार्क्स का प्रस्ताव है कि पूंजीवाद के प्रेरित बल श्रम, जिसका काम अवैतनिक लाभ और अधिशेष मूल्य के परम स्रोत के शोषण करने में है।
 
 
==सन्दर्भ==
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