"हुसैन इब्न अली": अवतरणों में अंतर
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== जीवन ==
हुसैन अलैहिस्स्लाम का जन्म ३/४ शाबान हिजरी को मक्का मे हुआ
मुहम्मद (स.अ.व्.) साहब को अपने नातियों से बहुत प्यार था [[मुआविया]] ने अली अ० से खिलाफ़त के लिए लड़ाई लड़ी थी। [[अली]] के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र [[हसन]]अ० को खलीफ़ा बनना था। मुआविया को ये बात पसन्द नहीं थी। वो हसन अलैहिस्स्लाम से संघर्ष कर खिलाफ़त की गद्दी चाहता था। हसन अलैहिस्स्लाम ने इस शर्त पर कि वो मुआविया की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे, मुआविया को हुकुमत दे दी। लेकिन इतने पर भी मुआविया प्रसन्न नहीं रहा और अंततः उसने हसन अलैहिस्स्लाम को ज़हर पिलवाकर शहीद कर डाला। मुआविया से हुई संधि के मुताबिक,मुआविया के मरने बाद हसन अलैहिस्स्लाम के पास फिर उनके छोटे भाई हुसैन अलैहिस्स्लाम खलीफ़ा बनेंगे पर मुआविया को ये भी पसन्द नहीं आया। उसने हुसैन अलैहिस्स्लाम को खिलाफ़त देने से मना कर दिया। इसके दस साल की अवधि के आखिरी 6 महीने पहले मुआविया की मृत्यु हो गई। शर्त के मुताबिक मुआविया की कोई संतान खिलाफत की हकदार नहीं होगी, फ़िर भी उसने अपने बेटे को [[याज़िद प्रथम]] खलीफ़ा बना दिया और इमाम हुसैन अलैहिस्स्लाम से बेयत मागने लगा जिस पर हुसैन अलैहिस्स्लाम ने कहा "मेरे जेसा तुझ जेसे कि बेयत कभी नही कर सकता"। सन् ६१ हिजरी 680 ई० में वे करबला के मैदान में अपने अनुचरों सहित, कुफ़ा के सूबेदार की सेना के द्वारा शहीद कर दिए गए
इस्लाम में इस दिन (मुहर्रम मास की 10वीं तारीख़) को बहुत पवित्र माना जाता है और [[ईरान]], [[इराक़]], [[पाकिस्तान]], [[भारत]], [[बहरीन]], [[जमैका]] सहित कई देशों में इस दिन सरकारी छुट्टियाँ दी जाती हैं।
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