"अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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:'''समाप्तवचने तस्मिन्नर्थशास्त्र विशारदः।'''
:'''पार्थो धर्मार्थतत्त्वज्ञो जगौ वाक्यमनन्द्रित:
निश्चित रूप से कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी राजशास्त्र के रूप में लिया गया होगा, यों उसने अर्थ की कई व्याख्याएँ की हैं। कौटिल्य ने कहा है— ''मनुष्याणां वृतिरर्थः'' (4) अर्थात् मनुष्यों की जीविका को अर्थ कहते हैं। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए उसने कहा है—''तस्या पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थ-शास्त्रमिति।'' (5) (मनुष्यों से युक्त भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।) इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि 'अर्थशास्त्र' के अन्तर्गत राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों से संबंधित सिद्धांतों का समावेश है। वस्तुतः कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' को केवल राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था का शास्त्र कहना उपयुक्त नहीं होगा। वास्तव में, यह अर्थव्यवस्था, राजव्यस्था, विधि व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धर्म व्यवस्था से संबंधित शास्त्र है।
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