"कामन्दकीय नीतिसार": अवतरणों में अंतर

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| *'''बीसवाँ सर्ग''' || गजदल, अश्वदल, रथदल व पैदल की रचना व नियुक्ति
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==कौटिल्य का अर्थशस्त्र तथा कामन्दकीय नीतिसार==
कौटिल्य ने राजा और राज्य विस्तार के लिये युद्धों को आवश्यक बताया है। चाणक्य का मानना था कि अगर राजा को युद्धों के लिये फिट रहना है तो उसे निरंतर [[शिकार]] आदि करके खुद को प्रशिक्षित रखना होगा वहीं नीतिसार में राजा के शिकार तक करने को भी अनावश्यक बताया गया है, वह जीवमात्र को जीने और सह-अस्तित्व की बात करती है। नीतिसार कूटनीति, मंत्रणा और इसी तरह के अहिंसक तरीकों को अपनाने को प्राथमिकता देती है।
 
कौटिल्य जहां विजय के लिये साम, दाम, दंड और भेद की नीति को श्रेष्ठ बताते हैं, वे माया, उपेक्षा और इंद्रजाल में भरोसा रखते हैं वहीं नीतिसार मंत्रणा शक्ति, प्रभु शक्ति और उत्साह शक्ति की बात करती है। इस में राजा के लिये राज्यविस्तार की कोई कामना नहीं है जबकि अर्थशास्त्र राज्य विस्तार और राष्ट्र की एकजुटता के लिये हर प्रकार की नीति का समर्थन करता है।
 
नीतिसार में युद्धों के खिलाफ काफी तर्क हैं। एक समझदार शासक को हमेशा युद्धों को टालने का ही प्रयास करना चाहिए।
 
==इन्हें भी देखें==