"जैन धर्म में भगवान": अवतरणों में अंतर

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== भगवान का स्वरुप ==
 
[[आचार्य समन्तभद्र]] विरचित प्रमुख [[जैन ग्रंथ]], [[रत्नकरण्ड श्रावकाचार]] के दो श्लोक सच्चे देव का स्वरुप बताते हैं:
 
:आप्तेनो च्छिनदोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना।