"गाथा": अवतरणों में अंतर

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[[वैदिक साहित्य]] का यह महत्वपूर्ण शब्द [[ऋग्वेद]] की [[संहिता]] में गीत या [[मंत्र]] के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है (ऋग्वेद 8। 32।8. 32.1, 8। 71। 8.71.14)। 'गै' (गाना) [[धातु]] से निष्पन्न होने के कारण गीत ही इसका व्युत्पत्तिलभ्य तथा प्राचीनतम अर्थ प्रतीत होता है।
:१. स्तुति।
:२. वह श्लोक जिसमें स्वर का नियम न हो।
:३. प्राचीन काल की एक प्रकार की ऐतिहासिक रचना जिसमें लोगों के दान, यज्ञादि का वर्णन होता था।
:४. आर्या नाम का वृत्ति। ५. एक प्रकार की प्राचीन भाषा जिसमें संस्कृत के साथ कहीं कहीं पाली भाषा के विकृत शब्द भी मिले रहते हैं।
:६. श्लोक।
:७. गीत।
:८. कथा। वृत्तात। हाल।
:९. बारह प्रकार के बौद्ध शास्त्रों में चौथा।
:१०. पारसियों के कारण धर्मग्रंथ का एक भेद। जैसे,—गाथा अह्रवैति गाथा उष्टवैति इत्यादि।
 
== परिचय ==
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:''रैभ्यासीदनुदेयी नाराशंसी न्योचनी।
:''सूर्याया भद्रमिद्वासो गाथयैति परिष्कृतम्॥ -- ऋग्वेद 10। 86। 6। 10.86.6
 
यह सहवर्गीकरण ऋक संहिता के बाद अन्य वैदिक ग्रंथों में भी बहुश: उपलब्ध होता है (तैत्तिरीय संहिता 7। 5। 11। 2; काठक संहिता 5। 2; ऐतरेय ब्राह्मण 6। 32; कौषीतकि ब्राह्मण 30। 5; शतपथ ब्राह्मण) 11। 5। 6। 8, जहां रैभी नहीं आता तथा गोपथ ब्राह्मण 2। 6। 12) इन तीनों शब्दों के अर्थ के विषय में विद्वानों में मतभेद है। भाष्यकार सायण ने इन तीनों शब्दों को अथर्ववेद के कतिपय मंत्रों के साथ समीकृत किया है। अथर्ववेद के 20वें कांड, 127वें सूक्त का 12वाँ मंत्र गाथा; इसी सूक्त का 1-3 मंत्र नाराशंसी तथा 4-6 मंत्र रैभी बतलाया गया है। इसी समीकरण को डाक्टर ओल्डेनबर्ग ऋग्वेद की दृष्टि में दोषपूर्ण मानते हैं, परंतु डाक्टर ब्लूमफील्ड की दृष्टि में यह समीकरण ऋक संहिता में स्वीकृत किया गया है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/गाथा" से प्राप्त