"जैन दर्शन": अवतरणों में अंतर

छो सन्दर्भ
No edit summary
पंक्ति 9:
 
अपने सुख और दुःख का कारण जीव स्वयं है, कोई दूसरा उसे दुखी कर ही नहीं सकता.पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, बंध-मोक्ष आदि जिनधर्म मानता है। अहिंसा, सत्य, तप ये इस धर्म का मूल है। नवतत्त्वों को समझ कर इसका स्वरुप जाना जा सकता है। नमस्कार सूत्र इस जैन दर्शन का सार है।
 
== तत्त्व ==
{{मुख्य|तत्त्व (जैन धर्म)}}
 
जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं। यह हैं-
 
#जीव
#अजीव
#आस्रव
#बन्ध
#संवर
#निर्जरा
#मोक्ष
 
==ब्रह्माण्ड विज्ञान==