"संवर": अवतरणों में अंतर

No edit summary
छोNo edit summary
पंक्ति 2:
 
== दर्शन ==
''संवर '' कर्म शय करने की ओर पहला कदम हैं। संसार सागर समान हैं और जीव [[आत्मा]] नाव के समान हैं जो इस सागर को पार करना चाहती हैं। इस नाव में छेद के कारण कर्म रूपी पानी का अस्राव होता रहता हैं। उस छेद को बंद करना संवर हैं।<ref>{{साँचा:Cite book|last = Sanghvi|first = Sukhlal|title = Commentary on Tattvārthasūtra of Vācaka Umāsvāti|publisher = L. D. Institute of Indology|year = 1974|location = Ahmedabad|language = |others = trans. by K. K. Dixit}} p.320</ref></div> संवर के पश्चात् कर्मों की निर्जरा होती हैं।
 
== संवर के माध्यम ==
पंक्ति 10:
# दस धर्म का पालन<ref name="hari46">Dr. Bhattacharya, H. S. (1976) p. 46</ref>: उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य
# अनुप्रेक्षा यानि की तत्वों का चिंतन<ref name="hari46">Dr. Bhattacharya, H. S. (1976) p. 46</ref>
# परिश्यपरिषह सहना<ref name="hari46">Dr. Bhattacharya, H. S. (1976) p. 46</ref>
# चरित्र<ref>Dr. Bhattacharya, H. S. (1976) p. 47</ref>
 
==इन्हें भी देखें==
* [[जैन धर्म]]
* [[तत्त्व (जैन धर्म)]]
* [[तत्त्वार्थ सूत्र]]
 
==सन्दर्भ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/संवर" से प्राप्त