"नामदेव": अवतरणों में अंतर

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== नामदेव के मत ==
बिसोवा खेचर से दीक्षा लेने के पूर्व तक ये सगुणोपासक थे। पंढरपुर के विट्ठल (विठोबा) की उपासना किया करते थे। दीक्षा के उपरांत इनकी विट्ठलभक्ति सर्वव्यापक हो गई। महाराष्ट्रीय संत परंपरा के अनुसार इनकी निर्गुण भक्ति थी, जिसमें सगुण निर्गुण का काई भेदभाव नहीं था। उन्होंने मराठी में कई सौ अभंग और हिंदी में सौ के लगभग पद रचे हैं। इनके पदों में हठयोग की कुंडलिनी-योग-साधना और प्रेमाभक्ति की (अपने "राम" से मिलने की) "तालाबेली" (विह्वलभावना) दोनों हैं। निर्गुणी कबीर के समान नामदेव में भी व्रत, तीर्थ आदि बाह्याडंबर के प्रति उपेक्षा तथा भगवन्नाम एवं सतगुरु के प्रति आदर भाव विद्यमान है। कबीर के पदों में यततत्र नामदेव की भावछाया दृष्टिगोचर होती है। कबीर के पूर्व नामदेव ने उत्तर भारत में निर्गुण भक्ति का प्रचार किया, जो निर्विवाद है।
 
== परलोक गमन ==
आपने दो बार तीर्थ यात्रा की व साधू संतो से भ्रम दूर करते रहे| ज्यों ज्यों आपकी आयु बढती गई त्यों त्यों आपका यश फैलता गया| आपने दक्षिण में बहुत प्रचार किया| आपके गुरु देव ज्ञानेश्वर जी परलोक गमन कर गए तो आप भी कुछ उपराम रहने लग गए| अन्तिम दिनों में आप पंजाब आ गए| अन्त में आप अस्सी साल की आयु में 1407 विक्रमी को परलोक गमन कर गए|
 
== साहित्यक देन ==
नामदेव जी ने जो बाणी उच्चारण की वह गुरुग्रंथ साहिब में भी मिलती हैं| बहुत सारी बाणी दक्षिण व महाराष्ट्र में गाई जाती है| आपकी बाणी पढ़ने से मन को शांति मिलती है व भक्ति की तरफ मन लगता है|
 
== ठाकुर को दूध पिलाना ==
एक दिन नामदेव जी के पिता किसी काम से बाहर जा रहे थे| उन्होंने नामदेव जी से कहा कि अब उनके स्थान पर वह ठाकुर की सेवा करेंगे जैसे ठाकुर को स्नान कराना, मन्दिर को स्वच्छ रखना व ठाकुर को दूध चढ़ाना| जैसे सारी मर्यादा मैं पूर्ण करता हूँ वैसे तुम भी करना| देखना लापरवाही या आलस्य मत करना नहीं तो ठाकुर जी नाराज हो जाएँगे|
 
नामदेव जी ने वैसा ही किया जैसे पिताजी समझाकर गए थे| जब उसने दूध का कटोरा भरकर ठाकुर जी के आगे रखा और हाथ जोड़कर बैठा व देखता रहा कि ठाकुर जी किस तरह दूध पीते हैं? ठाकुर ने दूध कहाँ पीना था? वह तो पत्थर की मूर्ति थे| नामदेव को इस बात का पता नहीं था कि ठाकुर को चम्मच भरकर दूध लगाया जाता व शेष दूध पंडित पी जाते थे| उन्होंने बिनती करनी शुरू की हे प्रभु! मैं तो आपका छोटा सा सेवक हूँ, दूध लेकर आया हूँ कृपा करके इसे ग्रहण कीजिए| भक्त ने अपनी बेचैनी इस प्रकार प्रगट की -
 
हे प्रभु! यह दूध मैं कपला गाय से दोह कर लाया हूँ| हे मेरे गोबिंद! यदि आप दूध पी लेंगे तो मेरा मन शांत हो जाएगा नहीं तो पिताजी नाराज़ होंगे| सोने की कटोरी मैंने आपके आगे रखी है| पीए! अवश्य पीए! मैंने कोई पाप नहीं किया| यदि मेरे पिताजी से प्रतिदिन दूध पीते हो तो मुझसे आप क्यों नहीं ले रहे? हे प्रभु! दया करें| पिताजी मुझे पहले ही बुरा व निकम्मा समझते हैं| यदि आज आपने दूध न पिया तो मेरी खैर नहीं| पिताजी मुझे घर से बाहर निकाल देंगे|
 
जो कार्य नामदेव के पिता सारी उम्र न कर सके वह कार्य नामदेव ने कर दिया| उस मासूम बच्चे को पंडितो की बईमानी का पता नहीं था| वह ठाकुर जी के आगे मिन्नतें करता रहा| अन्त में प्रभु भक्त की भक्ति पर खिंचे हुए आ गए| पत्थर की मूर्ति द्वारा हँसे| नामदेव ने इसका जिक्र इस प्रकार किया है -
 
ऐकु भगतु मेरे हिरदे बसै||
नामे देखि नराइनु हसै|| (पन्ना ११६३)
 
एक भक्त प्रभु के ह्रदय में बस गया| नामदेव को देखकर प्रभु हँस पड़े| हँस कर उन्होंने दोनों हाथ आगे बढाएं और दूध पी लिया| दूध पीकर मूर्ति फिर वैसी ही हो गई|
 
दूधु पीआई भगतु घरि गइआ ||
नामे हरि का दरसनु भइआ|| (पन्ना ११६३ - ६४)
 
दूध पिलाकर नामदेव जी घर चले गए| इस प्रकार प्रभु ने उनको साक्षात दर्शन दिए| यह नामदेव की भक्ति मार्ग पर प्रथम जीत थी|
 
शुद्ध ह्रदय से की हुई प्रर्थना से उनके पास शक्तियाँ आ गई| वह भक्ति भव वाले हो गए और जो वचन मुँह निकलते वही सत्य होते| जब आपके पिताजी को यह ज्ञान हुआ कि आपने ठाकुर में जान डाल दी व दूध पिलाया तो वह बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने समझा उनकी कुल सफल हो गई है|
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://namdeoshimpisamaj.org/Saint_Namdeo_Maharaj/ संत नामदेव महाराज]
* [https://spiritualworld.co.in/bhakto-aur-santo-ki-jivni-aur-bani-words-by-great-bhagats/bhagat-namdev-ji-an-introduction भक्त नामदेव जी]
 
[[श्रेणी:व्यक्तित्व]]