"मीरा बाई": अवतरणों में अंतर

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मीरांबाई का जन्म संवत् 1504 में जोधपुर में कुरकी नामक गाँव में हुआ था।<ref>कथा: मीरांबाई विशेषांक, (संपादक) अनुज, कथा प्रकाशन दिल्ली </ref> कुड्की में मीरा बाई के पिता रत्नसिंह का घर था । ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।
 
इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज के साथ हुआ था जो उदयपुर के [[महाराणा सांगा]] के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हेउन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरांमीरा इसके लिए तैयार नही हुई।हुईं। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरांबाईमीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को [[विष]] देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह [[द्वारका]] और [[वृंदावन]] गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उनको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।
 
[[द्वारिका]] में संवत [[१५५८]] ईस्वी में वो भगवान कृष्ण किकी मूर्ति मेमें समा गई।गईं।
 
== कृतियाँ ==
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== साहितिक देन ==
मीरा जी ने विभिन्न पदों व गीतों की रचना की| मीरा के पदों मे ऊँचे अध्यात्मिकआध्यात्मिक अनुभव हैं| उनमे समाहित संदेश और अन्य संतो की शिक्षा मे समानता नजर आती हैं| उनके प्रप्त पद उनकी अध्यात्मिकआध्यात्मिक उन्नति के अनुभवों का दर्पण हैं| मीरा ने अन्य संतो की तरह कई भाषाओं का प्रयोग किया है जैसे -
 
हिन्दी, गुजरतीगुजराती, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, अरबी, फारसी, मारवाड़ी, संस्कृत, मैथली और पंजाबी|
 
भावावेग, भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति, प्रेम की ओजस्वी प्रवाहधारा, प्रीतम वियोग की पीड़ा की मर्मभेदी प्रखता से अपने पदों को अलंकृत करने वाली प्रेम की साक्षात् मूर्ति मीरा के समान शायद ही कोई कवि हो| <ref name="Literature">[https://spiritualworld.co.in/bhakto-aur-santo-ki-jivni-aur-bani-words-by-great-bhagats/meera-bai-ji-an-introduction भक्त मीरा बाई जी]</ref>