"अमर सिंह प्रथम": अवतरणों में अंतर

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1601 ई.
 
* अकबर की असीरगढ़ विजय
 
ये अकबर की अन्तिम विजय थी
 
* इसी वर्ष बंगाल में अफगानों ने बगावत कर दी, जिसे कुचलने मानसिंह मेवाड़ से बंगाल रवाना हुआ |
 
* इसी वर्ष सलीम (जहांगीर) भी मेवाड़ से चला गया
 
अबुल फजल लिखता है "अपने काम को पूरा किये बगैर ही शहजादे सलीम मेवाड़ से रुखसत हुए"
 
12 अगस्त, 1602 ई.
 
* अबुल फजल दक्षिण से आगरा लौट रहा था | सलीम नहीं चाहता था कि अबुल फजल बादशाह अकबर तक पहुंच सके |
 
सलीम (जहांगीर) ने ग्वालियर के समीप वीर सिंह बुन्देला की मदद से अकबर के नवरत्नों में से एक व अकबरनामा के लेखक अबुल फजल की हत्या करवा दी
 
1602 ई.
 
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "वीरसिंह बुन्देला ने मुझे तोहफे में शैख अबुल फजल का सर दिया"
 
1603 ई.
 
"अकबर का महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध तीसरा व अन्तिम सैनिक अभियान"
 
* महाराणा अमरसिंह ने अपने दाजीराज के पदचिन्हों पर चलते हुए कई शाही थानों पर हमले कर फतह हासिल की
 
* हालांकि इस समय आधे से ज्यादा मेवाड़ अकबर के कब्जे में था
 
* महाराणा अमरसिंह द्वारा लगातार शाही थानों पर हमलों की खबर अकबर के कानों में भी पड़ी
 
* अकबर ने सलीम (जहांगीर) के नेतृत्व में शाही फौज मेवाड़ भेजी
 
* आमेर के जगन्नाथ कछवाहा और माधोसिंह कछवाहा, रामपुरा के राव दुर्गा समेत कई सिपहसालारों ने मुगल फौज के साथ मेवाड़ कूच किया
 
(राव दुर्गा पहले कभी महाराणा उदयसिंह का सामन्त हुआ करता था)
 
* सलीम शाही फौज के साथ अजमेर में रुका
 
अजमेर से उसने मेवाड़ के खिलाफ छुटपुट कार्यवाही की, जो असफल हुई
 
* गोमती नदी में बाढ़ आने पर महाराणा अमरसिंह ने ठीक उसी स्थान पर एक कृत्रिम झील बनवाने का विचार किया, जहां आज राजसमन्द झील बनी हुई है | महाराणा अमरसिंह अपनी इस योजना को पूरा नहीं कर पाए, क्योंकि जब तक गोमती नदी का पानी उतरा, तब तक उनको मुगलों ने घेर लिया | महाराणा मुगलों से लड़ते हुए उदयपुर की तरफ आ गए |
 
* सलीम अजमेर में बहाने बनाने लग गया
 
सलीम ने अकबर को खत लिखा कि उसे मेवाड़ के खिलाफ जंग के लिए हथियार वगैरह बेहद कम मुहैया करवाए गए हैं
 
इस तरह मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास व पिछली बार मिली पराजय (1600 ई.) को ध्यान में रखते हुए सलीम ने अपने पिता के आदेशों का उल्लंघन किया और वह मेवाड़ अभियान छोड़कर प्रयाग चला गया
 
1604 ई.
 
* इस वर्ष आमेर के भगवानदास की पुत्री व मानसिंह की बहन मानबाई ने आत्महत्या की
 
* इसी वर्ष 8 अप्रैल को अकबर के बेटे दानियाल मिर्जा की 32 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई
 
* इसी वर्ष 29 अगस्त को अकबर की माता मरियम मकानी हमीदा बानो बेगम का 80 वर्ष की उम्र में इन्तकाल हुआ
 
* मांडल के शाही थाने का मुख्तार जगन्नाथ कछवाहा था
 
महाराणा अमरसिंह ने मांडल की तरफ कूच किया
 
जगन्नाथ कछवाहा मांडल का थाना किसी मुगल को सौंपकर आगरा की तरफ रवाना हुआ
 
महाराणा अमरसिंह ने मांडल के शाही थाने पर हमला कर विजय प्राप्त की
 
1605 ई.
 
27 अक्टूबर
 
* बीमारी के चलते मुगल बादशाह अकबर की 63 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई
 
* 1597 ई. में चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा सम्पूर्ण मेवाड़ महाराणा प्रताप के कब्जे में था | अकबर के साथ महाराणा अमरसिंह के 8 वर्षों तक चले संघर्ष में महाराणा सिर्फ उदयपुर समेत मेवाड़ के थोड़े-बहोत हिस्सों को ही बचा पाए | फलस्वरुप अकबर अपनी मृत्यु के समय भी सम्पूर्ण मेवाड़ पर अधिकार नहीं कर सका |
 
* 1688 ई. में राजाराम जाट ने अकबर की कब्र लूट ली व अकबर की अस्थियों को जलाकर खाक कर दिया
 
* अकबर का सबसे बड़ा बेटा सलीम मुगल बादशाह बना, जो जहांगीर के नाम से मशहूर हुआ
 
जहांगीरहुमायूँ से लेकर औरंगजेब तक हर मुगल शहजादे ने बादशाह बनने के लिए अपने पिता का विरोध किया (अकबर को छोड़ कर)
 
* समय बदल चुका था..... मेवाड़ का राणा बदल चुका था..... मुगल बादशाह बदल चुका था..... पर मेवाड़ तब भी स्वाधीन था और आज भी स्वाधीनता के लिए हुंकार भर रहा था
 
वीरान.... बंजर..... जर्जर मेवाड़.... कंटीली झाड़ियाँ .... दूर-दूर तक फसलों का नामोनिशान नहीं....
 
इस दुर्दशा में भी मेवाड़ खड़ा था अपनी आन-बान-शान के साथ सर उठाकर
 
* मुगल बादशाह जहांगीर के लिए भी अपने विस्तृत साम्राज्य में मेवाड़ का स्वतन्त्र अस्तित्व असहनीय था
 
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "राणा अमरसिंह और उसके बाप-दादों ने अपने घमंड और पहाड़ी मकामों के भरोसे कभी किसी बादशाह की ताबेदारी नहीं की | यह मुआमिला कहीं मेरे समय में बाकी न रह जावे |"
 
* जहांगीर ने अपनी तख्तनशीनी के तुरन्त बाद सबसे पहला अभियान मेवाड़ फतह करने के लिए ही किया
 
जहांगीर ने अपने बेटे शहजादे परवेज को शाही फौज के साथ मेवाड़ भेजने का फैसला किया
 
नवम्बर, 1605 ई.
 
"जहांगीर का महाराणा अमरसिंह के खिलाफ पहला अभियान व मुगल फौज का मेवाड़ कूच करना"
 
> मेवाड़ पर एक बहुत बड़ा हमला करने से पहले मुगल पक्ष ने जो तैयारियां कीं, वे कुछ इस तरह हैं
 
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "मेरे बाप की मेवाड़ फतह करने की आरज़ू अधूरी रह गई थी | मुझे ख़याल आया कि क्यों न मेरे बेटे सुल्तान परवेज को मैं राणा के खिलाफ जंग करने भेज दूँ | राणा अमर हिन्दुस्तान का सबसे शैतानी ख़याल वाला काफिर था | मेरे बाप ने भी राणा के खिलाफ कई फौजें भेजी, पर कामयाबी नहीं मिली | मेरी तख्तनशीनी के जुलूस के मौके पर कई सिपहसालार, जमींदार और राजे-रजवाड़ों ने शिरकत की थी | मैंने उन सबको मेवाड़ फतह करने की इस बड़ी मुहिम पर भेज दिया | मैंने अपने बेटे शहजादे परवेज की कमान में 20,000 जंगी सवार मेवाड़ भेज दिए"
 
* शहजादे परवेज के साथ 20,000 घुड़सवारों ने मेवाड़ कूच किया
 
"मेवाड़ आने वाले मुगल फौज के नेतृत्वकर्ता व सिपहसालार"
 
* शहजादा परवेज - ये जहांगीर व उसकी पत्नी साहिब जमाल का बेटा था | इसने मुगल फौज का नेतृत्व किया | जहांगीर ने परवेज को एक खिलअत, एक रत्नजड़ित तलवार, एक रत्नजड़ित खंजर, 72000 रु. का हीरों का हार, ईराकी और तुर्कमानी घोड़े व कई प्रसिद्ध हाथी देकर मेवाड़ भेजा | जहांगीर लिखता है "मैंने परवेज को विदा करते वक्त उसको कहा कि अगर राणा खुद तुम्हारे पास आवे या अपने बड़े बेटे करण को भेजकर हमारा ताबेदार बनना चाहे, तो तुम उसकी बात मान लेना और उसके मुल्क को कोई नुकसान मत पहुंचाना"
 
* आसफ खान वज़ीर - इसे परवेज का सबसे खास सिपहसालार बनाया गया, जो जरुरत पड़ने पर परवेज को सलाह-मशवरा दिया करे | ये आसफ खान हल्दीघाटी युद्ध में भाग लेने वाला आसफ खान नहीं है, बल्कि ये शाहजहां का ससुर था | जहांगीर ने इसका पद बढ़ाकर इसे 2500 सवार के मनसब के स्थान पर 5000 सवार का मनसब दिया | जहांगीर ने आसफ खान का सम्मान करते हुए उसे रत्नजड़ित तलवार, एक घोड़ा और एक हाथी दिया |
 
* मुख्तार बेग - ये आसफ खान का चाचा था | इसे परवेज का दीवान बनाया गया |
 
* अब्दुर्ज्जाक मअमूरी बख्शी
 
* जफ़र बेग - इसे भी परवेज को सलाह-मशवरा देने के लिए खास सिपहसालार बना कर भेजा गया
 
* जगन्नाथ कछवाहा - ये मानसिंह का काका था, जिसने मेवाड़ के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया था | इसे 5000 का मनसब मिला | जहांगीर ने इसे एक खिलअत, एक रत्नजड़ित तलवार दी |
 
* माधोसिंह कछवाहा - जहांगीर ने इसे मुगल ध्वज सौंपा | इसे 3000 का मनसब मिला | जहांगीर ने इसे राजा मानसिंह के भाई का पुत्र बताया है, जबकि कविराज श्यामलदास के अनुसार ये मानसिंह का भाई था |
 
* महासिंह कछवाहा - ये आमेर के मानसिंह का पौत्र/जगतसिंह का पुत्र/मेवाड़ के शक्तिसिंह जी का दामाद था
 
* सगर/सागर सिंह सिसोदिया - ये मेवाड़ के जगमाल का छोटा भाई व महाराणा अमरसिंह का काका था | जहांगीर ने इसका नाम गलती से "राणा शकर" लिख दिया | "राणा" इसलिए लिखा गया क्योंकि अकबर ने सगर सिंह को "राणा" का खिताब दिया और चित्तौड़ की राजगद्दी पर बिठाने का वादा किया था, जो वो पूरा नहीं कर सका | जहांगीर लिखता है "एक वक्त पर मेरे बाप ने शहजादे खुसरो और राणा शकर की कमान में शाही फौज राणा अमरसिंह के खिलाफ भेजने का फैसला किया था, पर उससे पहले ही उनका (अकबर) इन्तकाल हो गया" | जहांगीर ने इसे रत्नजड़ित तलवार दी |
 
* रायसाल सिंह - जहांगीर ने इसे भी मुगल ध्वज सौंपा | इसे 3000 का मनसब मिला |
 
* मनोहर सिंह
 
* शैख अब्दुर्रहमान - ये अबुल फजल का बेटा था
 
* शैख रुकनुद्दीन पठान
 
* शेर खान - इसने उजबेगों से लड़ाई में अपना कंधा गंवाया | जहांगीर ने इसका मनसब 500 से बढ़ाकर 3500 कर दिया |
 
* ज़ाहिद खां - ये सादिक खां का बेटा था
 
* मुख्तार बेग
 
* कराखां तुर्कमान
 
* वज़ीर जमील
 
और 1000 अहदी
 
* इन सबको अपने-अपने लश्करों के साथ शहजादे परवेज के साथ कर दिया
 
* महाराणा अमरसिंह ने मुगल फौज के आने की खबर सुन अपने दाजीराज की नीति अपनाते हुए मेवाड़ को उजाड़ दिया, फसलें खत्म कर दीं ताकि मुगलों को रसद वगैरह न मिले, मेवाड़ की प्रजा को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया
 
नवम्बर, 1605 ई.
 
* तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर लिखता है "मैंने परवेज को मेवाड़ भेजने से पहले कहा कि अगर राणा खुद तुम्हारे पास आवे या अपने बड़े बेटे करण को भेजकर हमारा ताबेदार बनना चाहे, तो तुम उसकी बात मान लेना और उसके मुल्क को कोई नुकसान ना पहुंचाना"
 
* शहजादे परवेज के नेतृत्व में मुगल फौज मेवाड़ के करीब पहुंची, कि तभी उन्हें पता चला कि इस वक्त महाराणा अमरसिंह मांडल में हैं
 
* परवेज ने 20,000 घुड़सवारों के साथ मांडल की तरफ कूच किया
 
* महाराणा अमरसिंह की कुल फौज इस वक्त तकरीबन 4,000 थी, लेकिन मांडल में इस वक्त महाराणा केवल 500-700 मेवाड़ी वीरों के साथ थे, इसलिए महाराणा को मांडल का थाना छोड़कर जाना पड़ा और परवेज ने मांडल पर कब्जा किया
 
* जहांगीर लिखता है "मेरे बेटे परवेज ने मुझे पैगाम भेजा कि राणा मांडल का थाना छोड़कर चला गया है, मांडल अजमेर से 30-40 कोस दूर है | उम्मीद है कि ये खबर म