"निर्जरा": अवतरणों में अंतर

सुधार
पंक्ति 1:
'''निर्जरा''' [[जैन दर्शन]] के अनुसार एक [[तत्त्व (जैन धर्म)|तत्त्व]] हैं।{{sfn|आचार्य नेमिचन्द्र|२०१३|प=१३५}} इसका अर्थ होता है आत्मा के साथ जुड़े कर्मों का शय करना। यह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए आवश्यक हैं। [[आचार्य उमास्वामी]] द्वारा विरचित जैन ग्रन्थ [[तत्त्वार्थ सूत्र]] का ९ अध्याय इस विषय पर हैं। निर्जरा [[संवर]] के पश्चात् होती हैं। [[जैन ग्रन्थ]] द्रव्यसंग्रह के अनुसार कर्म आत्मा को धूमिल करते देते हैं, निर्जरा से आत्मा फिर निर्मलता को प्राप्त होती हैं।<ref name="st">[[:en:Nirjara#Sd|Nemichandra, p. 94]]</ref></div>
<ref name="st">[[:en:Nirjara#Sd|Nemichandra, p. 94]]</ref></div>
 
== भेद ==
Line 13 ⟶ 12:
=== बाह्य तप ===
 
# सम्यकसम्यक् अनशन
# सम्यकसम्यक् अल्पआहार
# सम्यकसम्यक् रसपरित्याग
# सम्यकसम्यक् काय कलेश
 
==इन्हें भी देखें==