"छत्तीसगढ़ के आदिवासी देवी देवता": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 57:
* छींक माता
* कुलदेवी
* [[सन्त सिंगाजी]]
* अवन्तिका देवी
* काजली माता
पंक्ति 72:
* बोदरी माता
* मोती बाबजी
* विजासना माता बन्दीछोड़ बाबा
== देवारों के अपने देवी-देवता ==
देवारों में लोक देवी देवता के संदर्भ में एक बेहद रोचक रीति नामांतरण की मिलती है। एक ही आराध्य देव अलग-अलग समय, प्रसंग और संदर्भों में विविध परिचय से पूजा जाता हैं मसलन खैरागढ़िया देव इसे घर के बाहर शुद्धता के साथ भी रखते है। जब इस देवता को बाहर पूजतें हैं तो उसे बैरासू कहते है। इसी देव की धर भीतर आराधन्य होने से या दूतहा नाम मं बदल जाता है। फिर इसी परिचय के संग उसकी अर्चना की जाती हैं। देवारों में दूसरे कुल गौत्र के वाहक इसे गोसाई-पोसाई के नाम से आराधते हैं। मांगलिक प्रसंगों की तरह ही अनुष्ठातिक क्रिया-कलापों में बलि देने की प्रथा का अनिवार्य चलन है। जितने देवी-देवता, उनकी अपनी पसंद के अनुसार बलि दे कर कार्य संपादित किया जाता है। किन्हीं खास पूजा अथवा देवी-देवता की अर्चना में महिलायें सम्मिलित नहीं होती। पुरुष वर्ग ही इसमें भाग लेता है।
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