"अमरकोश": अवतरणों में अंतर
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== संरचना ==
अमरकोश श्लोकरूप में रचित है। इसमें तीन काण्ड (अध्याय) हैं। स्वर्गादिकाण्डं, भूवर्गादिकाण्डं और सामान्यादिकाण्डम्। प्रत्येक काण्ड में अनेक वर्ग हैं। विषयानुगुणं शब्दाः अत्र वर्गीकृताः सन्ति। शब्दों के साथ-साथ इसमें लिङ्गनिर्देश भी किया हुआ है।
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=== प्रथमकाण्ड/स्वर्गादिकाण्डम् ===
स्वर्गादिकाण्ड में ग्यारह वर्ग हैं :
: १ स्वर्गवर्गः २ व्योमवर्गः ३ दिग्वर्गः ४ कालवर्गः ५ धीवर्गः ६ वाग्वर्गः
: ७ शब्दादिवर्गः ८ नाट्यवर्गः ९ पातालभोगिवर्गः १० नरकवर्गः ११ वारिवर्गः
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=== द्वितीयकाण्ड/भूवर्गादिकाण्डम् ===
इस काण्ड में दस वर्ग हैं:
: १ भूमिवर्गः २ पुरवर्गः ३ शैलवर्गः ४ वनौषधिवर्गः ५ सिंहादिवर्गः ६ मनुष्यवर्गः
: ७ ब्रह्मवर्गः ८ क्षत्रियवर्गः ९ वैश्यवर्गः १० शूद्रवर्गः
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=== तृतीयकाण्डम्/सामान्यादिकाण्डम् ===
इस काण्ड में छः वर्ग हैं:
: १ विशेष्यनिघ्नवर्गः २ सङ्कीर्णवर्गः ३ नानार्थवर्गः
: ४ नानार्थाव्ययवर्गः ५ अव्ययवर्गः ६ लिङ्गादिसङ्ग्रहवर्गः |}
अन्य [[संस्कृत]] कोशों की भांति अमरकोश भी [[छन्द|छंदोबद्ध]] रचना है। इसका कारण यह है कि भारत के प्राचीन पंडित "पुस्तकस्था' विद्या को कम महत्व देते थे। उनके लिए कोश का उचित उपयोग वही विद्वान् कर पाता है जिसे वह कंठस्थ हो। श्लोक शीघ्र कंठस्थ हो जाते हैं। इसलिए संस्कृत के सभी मध्यकालीन कोश पद्य में हैं। इतालीय पडित पावोलीनी ने सत्तर वर्ष पहले यह सिद्ध किया था कि संस्कृत के ये कोश कवियों के लिए महत्त्वपूर्ण तथा काम में कम आनेवाले शब्दों के संग्रह हैं। अमरकोश ऐसा ही एक कोश है।
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