"अमरकोश": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
'''अमरकोश''' [[संस्कृत]] के [[संस्कृत शब्दकोश|कोशों]] में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला [[समान्तर कोश]] (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसके रचनाकार [[अमरसिंह]] बताये जाते हैं जो [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] (चौथी शब्ताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे। कुछ लोग अमरसिंह को [[विक्रमादित्य]] (सप्तम शताब्दी) का समकालीन बताते हैं।<ref>[Amarakosha compiled by B.L.Rice, edited by N.Balasubramanya, 1970, page X]</ref>
{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2014}}
 
'''अमरकोश''' [[संस्कृत]] के [[संस्कृत शब्दकोश|कोशों]] में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला [[समान्तर कोश]] (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसके रचनाकार [[अमरसिंह]] बताये जाते हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ [[मेदिनीकोश|मेदिनी]] में केवल साढ़े चार हजार और [[हलायुध]] में आठ हजार हैं। इसी कारण पंडितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई।
 
== संरचना ==
पंक्ति 49:
'''पीठिकाश्लोकाः'''
::: यस्य ज्ञानदयासिन्धोरगाधस्यानघा गुणाः।
::: सेव्यतामक्षयो धीरास्स श्रिय्यै चामृताय च।।च॥
 
::: समाहृत्यान्यतन्त्राणि संक्षिप्त्यैः प्रतिसंस्कृतैः।
::: सम्पूर्णमुच्यते वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्।।वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्॥
 
::: प्रायशो रूपभेदेन साहचर्याच्च कुत्रचित्।
::: स्त्रीनपुंसकं ज्ञेयं तद्विशेषविधेः क्वचित्।।क्वचित्॥
 
::: भेदाख्यानाय न द्वन्द्वो नैकशेषो न सङ्करः।
::: कृतोत्र भिन्नलिङ्गानामनुक्तानां क्रमादृते।।क्रमादृते॥
 
::: त्रिलिङ्ग्यां त्रिष्विति पदं मिथुने तु द्वयोरिति।
::: निषिद्धलिङ्गं शेषार्थं त्वन्ताथादि न पूर्वभाक्।।पूर्वभाक्॥
 
'''स्वर्गः'''
::: स्वरव्ययं स्वर्गनाकत्रिदिवत्रिदशालयाः।
::: सुरलोको द्योदिवौ द्वे स्त्रियां क्लीबे तिविष्टपम्।।तिविष्टपम्॥
 
'''बुद्धिः'''
::: बुद्धिर्मनीषा धिषणा धीः प्रज्ञा शेमुषी मतिः।।मतिः॥
::: प्रेक्षोपलब्धिश्चित्संवित्प्रतिपज्ज्ञप्तिचेतनाः।
 
'''भूमिः'''
::: भूर्भूमिरचलानन्ता रसा विश्वम्भरा स्थिरा।
::: धरा धरित्री धरणी क्षोणी ज्या काश्यपी क्षितिः।।क्षितिः॥
::: सर्वंसहा वसुमती वसुधोर्वी वसुन्धरा।
::: गोत्रा कुः पृथिवी पृथ्वी क्ष्मावनिर्मेदिनी मही।।मही॥
 
'''नमस्कृतम्'''
::: स्यादर्हिते नमस्यितनमसितमपचायितार्चितापचितम्।
'''पूजितम्'''
::: वरिवसिते वरिवस्यितमुपासितं चोपचरितं च।।च॥
 
'''ककारान्ताः'''
::: पद्ये यशसि च श्लोकश्शरे खड्गे च सायकः।
::: जम्बुकौ क्रोष्टुवरुणौ पृथुकौ चिपिटार्भकौ।।चिपिटार्भकौ॥
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
== इन्हें भी देखें==