"दशकुमारचरित": अवतरणों में अंतर
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वर्तमान उपलब्ध दशकुमारचरित में तीन भाग सम्मिलित हैं -
:(1) आरंभिक अथवा भूमिका भाग, जिसमें पाँच उच्छ्वास हैं, '''पूर्वपीठिका''' के नाम से प्रसिद्ध हैं;
:(2) मध्यम भाग, जिसमें आठ उच्छ्वास हैं,
:(3) अंतिम अथवा परिशिष्ट भाग, जो '''उत्तरपीठिका''' के नाम से प्रसिद्ध है।
इनमें से ग्रंथ का मध्य भाग ही, जो आठ उच्छ्वासों में विभक्त है, दंडी की मौलिक कृति माना जाता है। शेष भाग अर्थात् पूर्वपीठिका और उत्तरपीठिका अन्य लेखकों की रचनाएँ हैं जो कालांतर में मूल ग्रंथ के आदि और अंत में क्रमश: जोड़ दी गई है। विद्वानों की धारणा है कि दंडी ने पहले अवश्य पूर्ण ग्रंथ की रचना की होगी, किंतु बाद में कारणवश वे भाग नष्ट हो गए। दंडी के मूल ग्रंथ के आठ उच्छ्वासों में केवल आठ कुमारों की कथा आती है। किंतु पूर्वपीठिका में दी गई दो कुमारों की कथा मिलाकर दस कुमारों की संख्या पूरी हो जाती है। इसी प्रकार मूल ग्रंथ के आठवें उच्छ्वास में वर्णित अपूर्ण विश्रुत चरित को उत्तरपीठिका में पूरा किया गया है।
;दशकुमारों के नाम
* राजवाहन
* सोमदत्त
* पुष्पोद्भव
* अपहारवर्मन
* उपहारवर्मन
* अर्थपाल
* प्रमति
* मित्रगुप्त
* मंत्रगुप्त
* विश्रुत
== रचयिता ==
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