"अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)": अवतरणों में अंतर

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== पुस्तक का नाम 'अर्थशास्त्र' ही क्यों ? ==
कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' राजनीतिक सिद्धांतों की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इस संबंध में यह प्रश्न उठता है कि कौटिल्य ने अपनी पुस्तक का नाम 'अर्थशास्त्र' क्यों रखा ? उसप्राचीनकाल समयमें 'अर्थशास्त्र' कोशब्द राजनीतिका औरप्रयोग एक व्यापक अर्थ में होता था। इसके अन्तगर्त मूलतः राजनीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कानून प्रशासनआदि का शास्त्रअध्ययन मानाकिया जाता था। महाभारतआचार्य मेंकौटिल्य इसकी संबंधदृष्टि में राजनीति शास्त्र एक प्रसंगस्वतंत्र शास्त्र है और आन्वीक्षिकी (दर्शन), जिसमेंत्रयी अर्जुन(वेद) कोतथा अर्थशास्त्रवार्ता एंव कानून आदि उसकी शाखाएँ हैं। सम्पूर्ण समाज की रक्षा राजनीति या दण्ड व्यवस्था से होती है या रक्षित प्रजा ही अपने-अपने कर्त्तव्य का विशेषज्ञपालन मानाकर गयासकती है।
 
उस समय अर्थशास्त्र को राजनीति और प्रशासन का शास्त्र माना जाता था। [[महाभारत]] में इस संबंध में एक प्रसंग है, जिसमें [[अर्जुन]] को अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ माना गया है।
:'''समाप्तवचने तस्मिन्नर्थशास्त्र विशारदः।'''
:'''पार्थो धर्मार्थतत्त्वज्ञो जगौ वाक्यमनन्द्रित:॥''' (3)
 
:'''समाप्तवचने तस्मिन्नर्थशास्त्र विशारदः।'''
निश्चित रूप से कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी राजशास्त्र के रूप में लिया गया होगा, यों उसने अर्थ की कई व्याख्याएँ की हैं। कौटिल्य ने कहा है— ''मनुष्याणां वृतिरर्थः'' (4) अर्थात् मनुष्यों की जीविका को अर्थ कहते हैं। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए उसने कहा है—''तस्या पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थ-शास्त्रमिति।'' (5) (मनुष्यों से युक्त भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।) इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि 'अर्थशास्त्र' के अन्तर्गत राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों से संबंधित सिद्धांतों का समावेश है। वस्तुतः कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' को केवल राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था का शास्त्र कहना उपयुक्त नहीं होगा। वास्तव में, यह अर्थव्यवस्था, राजव्यस्था, विधि व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धर्म व्यवस्था से संबंधित शास्त्र है।
:'''पार्थो धर्मार्थतत्त्वज्ञो जगौ वाक्यमनन्द्रित:॥''' (3)
 
निश्चित रूप से कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी राजशास्त्र के रूप में लिया गया होगा, यों उसने अर्थ की कई व्याख्याएँ की हैं। कौटिल्य ने कहा है— ''मनुष्याणां वृतिरर्थः'' (4) अर्थात् मनुष्यों की जीविका को 'अर्थ' कहते हैं। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए उसने कहा है—''तस्या पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थ-शास्त्रमिति।'' (5) (मनुष्यों से युक्त भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है।) इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि 'अर्थशास्त्र' के अन्तर्गत राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों से संबंधित सिद्धांतों का समावेश है। वस्तुतः कौटिल्य 'अर्थशास्त्र' को केवल राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था का शास्त्र कहना उपयुक्त नहीं होगा। वास्तव में, यह अर्थव्यवस्था, राजव्यस्था, विधि व्यवस्था, समाज व्यवस्था और धर्म व्यवस्था से संबंधित शास्त्र है।
 
कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' के पूर्व और भी कई अर्थशास्त्रों की रचना की गयी थी, यद्यपि उनकी पांडुलिपियाँ उपलब्ध नहीं हैं। भारत में प्राचीन काल से ही अर्थ, काम और धर्म के संयोग और सम्मिलन के लिए प्रयास किये जाते रहे हैं और उसके लिये शास्त्रों, स्मृतियों और पुराणों में विशद् चर्चाएँ की गयी हैं। कौटिल्य ने भी 'अर्थशास्त्र' में अर्थ, काम और धर्म की प्राप्ति के उपायों की व्याख्या की है। वात्स्यायन के 'कामसूत्र' में भी अर्थ, धर्म और काम के संबंध में सूत्रों की रचना की गयी है।