"श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि": अवतरणों में अंतर

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"(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि [[सवाई जयसिंह]] के समकालीन, [[बूंदी]] और [[जयपुर]] के राजदरबारों से सम्मानित, आन्ध्र-तैलंग-भट्ट, [[संस्कृत]] और [[ब्रजभाषा]] के महाकवि थे।<ref> 1.'[[कलानाथ शास्त्री]] :'संस्कृत के गौरव शिखर'(राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली, प्रकाशन 1998)</ref>
 
"सवाई जयसिंह द्वितीय (03 नवम्बर 1688 - 21 सितम्बर 1743) ने अपने समय में जिन विद्वत्परिवारों को बाहर से ला कर अपने राज्य में जागीर तथा संरक्षण दिया उनमें आन्ध्र प्रदेश से आया यह तैलंग ब्राह्मण परिवार प्रमुख स्थान रखता है। इस परिवार में में ही उत्पन्न हुए थे (देवर्षि) कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट जी, जिन्होंने '[[ईश्वर विलास]]', 'पद्यमुक्तावालीपद्यमुक्तावली', 'राघव गीत' आदि अनेक ग्रंथों की रचना कर राज्य का गौरव बढाया।बढ़ाया। इन्होंने सवाई जयसिंह से सम्मान प्राप्त किया था, (उनके द्वारा जयपुर में आयोजित) [[अश्वमेध यज्ञ]] में भाग लिया था, जयपुर को बसते हुए देखा था और उसका एक ऐतिहासिक महाकाव्य में वर्णन किया था। देवर्षि-कुल के इस प्रकांड विद्वान ने अपनी प्रतिभा के बल पर अपने जीवन-काल में पर्याप्त प्रसिद्धि, समृद्धि एवं सम्मान प्राप्त किया था।"<ref>2.'संस्कृत के युग-पुरुष: मंजुनाथ': पृष्ठ 1, प्रकाशक: 'मंजुनाथ स्मृति संस्थान, सी-८, पृथ्वीराज रोड, जयपुर-३०२००१</ref>
 
[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] ने अपने इन पूर्वज कविकलानिधि का [[सोरठा]] छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों<ref> 3.[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] :'[[जयपुर-वैभवम]]':'आमुखवीथी': पृष्ठ १८ : (प्रथम संस्करण-१९४७)</ref> में स्मरण किया था- ''तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः। भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:।।'' [http://sanskrit.nic.in/biblofinal.pdf]
 
[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] ने अपने इन पूर्वज कविकलानिधि का [[सोरठा]] छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों<ref> 3.[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] :'[[जयपुर-वैभवम]]':'आमुखवीथी': पृष्ठ १८ : प्रथम संस्करण-१९४७)</ref> में स्मरण किया था- ''तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः। भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:।।'' [http://sanskrit.nic.in/biblofinal.pdf]
=='देवर्षि' अवटंक का इतिहास ==
 
" इस परिवार के उत्तर भारत में प्रवजन का इतिहास बड़ा दिलचस्प है जिसका अभिलेख इसी वंश के विद्वानों ने '''"कुलप्रबंध"''' नामक संस्कृत काव्य में अभिलिखित भी कर दिया है। दक्षिण भारत के अधिकांश विद्वान् [[शंकराचार्य]] या [[वल्लभाचार्य]] जैसे आचार्यों द्वारा की गई सम्पूर्ण भारत की यात्रा या तीर्थयात्रा के सहयात्री होने के नाते उत्तर भारत तक आये थे, जिनमें से कुछ ने देशी रियासतों के राजाओं के उनके वैदुष्य से प्रभावित होने पर उनका गुरु या राजपंडित होना स्वीकार किया और वहीं बस गए। कुछ विद्याध्ययन के लिए [[काशी]] आये और इस विद्याकेंद्र से देशी राजाओं के द्वारा चुन-चुन कर अपनी रियासतों में ससम्मान ले जाए गए।
 
धीरे-धीरे इन्होंने मातृभाषा के रूप में हिन्दी या उत्तरभारतीय भाषाएँ अपना लीं। इस परिवार के पूर्व-पुरुष '''बावी जी दीक्षित''' वल्लभाचार्य के परिवार के साथ उत्तर भारत आये थे। इन्होंने काशी और [[प्रयाग]] में विद्याध्ययन किया और अपने बालकों को भी वहीं पढवाया। प्रयाग में उन दिनों (पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी) रींवा रियासत का आधिपत्य था। रींवा नरेश गोपालसिंह ने बावी जी दीक्षित के प्रपौत्र '''मंडल दीक्षित''' के वैदुष्य से प्रभावित हो कर उन्हें राजगुरु बना लिया और '''''देवर्षि''' नामक ग्राम'' जागीर में दिया। उसके बाद से उनका अवटंक '''देवर्षि''' बन गया। आन्ध्र के परिवारों में अपने ग्राम का नाम अपने नाम के प्रारंभ में लगाने की परिपाटी रही है- जैसे 'सर्वपल्ली राधाकृष्णन' ('सर्वपल्ली' ग्राम का नाम है)।"<ref>4.उपरोक्त/</ref>
 
== श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि का जयपुर आगमन ==
(देवर्षि) भट्टजी का परिवार रींवा नरेश, (महाराजा अजीत सिंह (1755/1809), जिन्हें 'बांधव-नरेश' भी कहा जाता है, की छत्रछाया में कुछ वर्ष रहा और वहां से [[बूंदी]] [[राजस्थान]] इस कारण आ बसा कि बूंदी के राजा भी वैदुष्य के गुणग्राहक थे। जब बूंदी राजपरिवार का सम्बन्ध रींवा में हुआ तो वहां के कुछ राज पंडितों को जागीरें दे कर उन्होंने बूंदी में ला बसाया। बूंदी के राजा बुधसिंह, जो सवाई जयसिंह के बहनोई थे, के शासन में श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि बूंदी राज्य के राजपंडित थे। "वह वेद, पुराण, दर्शन, व्याकरण, संगीत आदि शास्त्रों के मान्य विद्वान तो थे ही, संस्कृत, प्राकृत और ब्रजभाषा के एक अप्रतिम वक्ता और कवि भी थे- (बूंदी में) सवाई जयसिंह इनसे इतने प्रभावित हुए कि उनसे किसी भी कीमत पर आमेर आ जाने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण भट्ट ने आमेर में राजपंडित हो कर आ कर बसने का यह आमंत्रण अपने संरक्षक राजा बुधसिंह की स्वीकृति पा कर ही स्वीकार किया, उससे पूर्व नहीं। अनेक ऐतिहासिक काव्यों में यह उल्लेख मिलता है- "बून्दीपति बुधसिंह सौं ल्याए मुख सौं याचि।"<ref>5.Tripathi, Radhavallabh; Shastri, Devarshi Kalanath; Pandey, Ramakant, eds. (2010). मञ्जुनाथग्रन्थावलिः (मञ्जुनाथोपाह्वभट्टश्रीमथुरानाथशास्त्रिणां काव्यरचनानां सङ्ग्रहः) [The works of Mañjunātha (Anthology of poetic works of Bhaṭṭaśrī Mathurānātha Śāstri, known by the pen-name of Mañjunātha)] (in Sanskrit). New Delhi, India: Rashtriya Sanskrit Sansthan. ISBN 978-81-86111-32-1. Retrieved February 26, 2013.</ref>[http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf]
 
(देवर्षि) भट्टजी का परिवार रींवा नरेश, (महाराजा अजीत सिंह (1755/1809), जिन्हें 'बांधव-नरेश' भी कहा जाता है, की छत्रछाया में कुछ वर्ष रहा और वहां से [[बूंदी]] [[राजस्थान]] इस कारण आ बसा कि बूंदी के राजा भी वैदुष्य के गुणग्राहक थे। जब बूंदी राजपरिवार का सम्बन्ध रींवा में हुआ तो वहां के कुछ राज पंडितों को जागीरें दे कर उन्होंने बूंदी में ला बसाया। बूंदी के राजा बुधसिंह, जो सवाई जयसिंह के बहनोई थे, के शासन में श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि बूंदी राज्य के राजपंडित थे। "वह वेद, पुराण, दर्शन, व्याकरण, संगीत आदि शास्त्रों के मान्य विद्वान तो थे ही, [[संस्कृत]], [[प्राकृत]] और [[ब्रजभाषा]] के एक अप्रतिम वक्ता और कवि भी थे- (बूंदी में) सवाई जयसिंह इनसे इतने प्रभावित हुए कि उनसे किसी भी कीमत पर [[आमेर]] आ जाने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण भट्ट ने आमेर में राजपंडित हो कर आ कर बसने का यह आमंत्रण अपने संरक्षक राजा बुधसिंह की स्वीकृति पा कर ही स्वीकार किया, उससे पूर्व नहीं। अनेक ऐतिहासिक काव्यों में यह उल्लेख मिलता है- "बून्दीपति बुधसिंह सौं ल्याए मुख सौं याचि।"<ref>5.Tripathi, Radhavallabh; Shastri, Devarshi Kalanath; Pandey, Ramakant, eds. (2010). मञ्जुनाथग्रन्थावलिः (मञ्जुनाथोपाह्वभट्टश्रीमथुरानाथशास्त्रिणां काव्यरचनानां सङ्ग्रहः) [The works of Mañjunātha (Anthology of poetic works of Bhaṭṭaśrī Mathurānātha Śāstri, known by the pen-name of Mañjunātha)] (in Sanskrit). New Delhi, India: Rashtriya Sanskrit Sansthan. ISBN 978-81-86111-32-1. Retrieved February 26, 2013.</ref>[http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf]
==(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि (सन १७७५) का साहित्यिक-अवदान ==
 
देवर्षि श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि के वंशजों में अनेक अद्वितीय विद्वान, [[कवि]], [[तांत्रिक]], [[संगीतज्ञ]] आदि हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से [[जयपुर]] की प्रतिष्ठा पूरे भारतवर्ष में फैलाई। उनकी इस विद्वद्वंश परंपरा में द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट, [[देवर्षि रमानाथ शास्त्री]], [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]], देवर्षि [[कलानाथ शास्त्री]] जैसे विद्वानों ने अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य एवं विपुल साहित्य सर्जन से [[संस्कृत]] जगत को आलोकित किया है।<ref>'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-वंशवृक्ष' (भाग-2) संपादक स्व. पोतकूर्ची कंठमणि शास्त्री और करंजी गोकुलानंद तैलंग द्वारा 'शुद्धाद्वैत वैष्णव वेल्लनाटीय युवक-मंडल', नाथद्वारा से वि. सं. 2007 में प्रकाशित</ref>
 
==(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि (सन १७७५1775) का साहित्यिक-अवदान ==
 
'ईश्वरविलास' महाकाव्य इनका कविता-शैली में जयपुर के बारे में लिखा इतिहासग्रंथ ही है। इसकी पांडुलिपि सिटी पैलेस (चन्द्रमहल) के पोथीखाना में है। कई साल पहले इसे '[[प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान]]' जोधपुर ने [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] की भूमिका सहित प्रकाशित किया था।
वंशवृक्ष<ref>6.'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-वंशवृक्ष' (भाग-2) संपादक स्व. पोतकूर्ची कंठमणि शास्त्री और करंजी गोकुलानंद तैलंग द्वारा 'शुद्धाद्वैत वैष्णव वेल्लनाटीय युवक-मंडल', नाथद्वारा से वि. सं. 2007 में प्रकाशितउपरोक्त</ref> में इनके द्वारा रचित साहित्य की सूची इस प्रकार है-
*[[ईश्वरविलास महाकाव्य]]<ref>'ईश्वरविलास महाकाव्य', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, जगदीश संस्कृत पुस्तकालय, जयपुर, 2006</ref>
*[[पद्यमुक्तावली]]<ref>'पद्यमुक्तावली', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला भाग 30, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, 1959</ref>
*[[पद्यमुक्तावाली]]
* [[सुन्दरी स्तवराज]]
 
*[[वेदांत]] पञ्चविंशति
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*[[टीका]] [[उपनिषद]]
 
*[[साम्भर युद्ध]]<ref>'साम्भर युद्ध', राजस्थान सुलभ पुस्तकमाला भाग 25, राजस्थान साहित्य समिति, 1978</ref>
*[[साम्भर युद्ध]]
 
*[[जाजौ युद्ध]]
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*[[नखशिख वर्णन]]
 
* [[राम रासा ]]
 
*शब्दार्थतर्कामृतम<ref>'शब्दार्थतर्कामृतम', सं. ललितकुमार त्रिपाठी, गंगानाथ झा परिसर मूलग्रंथमाला भाग 49, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, गंगानाथ झा परिसर, नई दिल्ली, 2010</ref>
 
*[[वृत्तमुक्तावली]]<ref>'वृत्तमुक्तावली', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला भाग 69, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, 1963</ref>
 
*वृत्तिदीपिका<ref>'वृत्तिदीपिका', सं. पुरुषोत्तम शर्मा, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला, राजस्थान पुरातत्वान्वेषण मंदिर, 1956</ref>
 
*रामगीतम<ref>'रामगीतम', सं. गोविन्दराम चरौरा, राजस्थानी ग्रंथागार, 1992</ref>
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== सन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ==
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== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी:महाकवि]]