"दण्ड": अवतरणों में अंतर

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== दण्ड की उत्पत्ति ==
दंड की उत्पत्ति राज्यसंस्था की उत्पत्ति के साथ हुई। [[मनुस्मृति]] (सप्तम अध्याय) और [[महाभारत]] (शांतिपर्व: 56.13-33) में यह कहा गया है कि मानव जाति की प्रारंभिक स्थिति अत्यंत पवित्र स्वभाव, दोषरहित कर्म, सत्वप्रकृति और ऋतु की थी, जब न तो किसी राजा की स्थिति थी, न राज्य था, न दंड था, न दंडी था और सभी लोग धर्म के द्वारा ही एक दूसरे की रक्षा करते थे।
: ''न राज्यं न च राजासीत न दण्डो न च दाण्डिकः।''
: ''स्वयमेव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम ॥''
 
किंतु कालांतर में तामस्गुणों का प्राबल्य बढ़ने लगा, मनुष्य समाज अपनी आदिम सत्व प्रकृति से च्युत हो गया और मात्स्य न्याय छा गया। बलवान् कमजोरों को खाने लगे। ऐसी स्थिति में राज्य और राजा की उत्पत्ति हुई और सबको सही रास्तों पर रखने के लिये दंड का विधान हुआ। दंड राज्य शक्ति का प्रतीक हुआ जो सारी प्रजाओं का शासक, रक्षक तथा सभी के सोते हुए जागनेवाला था। अत: दंड को ही धर्म स्वीकार किया गया (मनुस्मृति 7.18)। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि [[धर्म]] का साधक केवल दंड ही माना गया। वह धर्म जिसमें [[अर्थ]] और [[काम]] भी समाहित है अर्थात् दंड त्रिवर्ग का साधक स्वीकृत हुआ। आदर्श से स्खलन को दूर करने के लिये दंड की आवश्यकता हुई।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दण्ड" से प्राप्त