"संक्रमण": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
पंक्ति 2:
 
== इतिहास ==
19वीं शताब्दी में पाश्चात्य वैज्ञानिक [[लूई पास्चर]] ने अपने प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित किया कि [[जीवाणु|जीवाणुओं]] (bacteria) द्वारा विशिष्ट व्याधियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। कॉक नामक वैज्ञानिक ने बैक्टीरिया अध्ययन की कतिपय प्रयोगशालीय पद्वतियों पर भी प्रकाश डाला। तत्पश्चात् इस प्रकाश से प्रेरणा लेकर अनेक वैज्ञानिक संहारक रोगों के जनक इन जीवाणुओं की खोज में लग गए और 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में वैज्ञानिकों ने रोगजनक जीवाणुओं की खोज यथा पूयोत्पादक, [[राजयक्ष्मा]], [[डिप्थीरिया|रोहिणी]] (diphtheria), [[टाइफाइडआंत्र ज्वर]] (Typhoid), [[विसूचिका]] (cholera), [[धनुस्तंभ]] (tetanus), [[प्लेग]] एवं [[प्रवाहिका]] (dysentery) आदि संक्रामक रोगों के विशिष्ट जीवाणुओं का पता लगाकर इनके गुणधर्म, संक्रमण एवं नैदानिक पद्धतियों पर भी प्रकाश डाला।
 
अब इस दिशा में अत्यधिक सफलता प्राप्त की गई है तथा इस प्रकार के अधिकांश रोगों के जीवाणुओं का निश्चित रूप से पता लगा लिया गया है। परिणामत: इनके संक्रमण की रोकथाम की तथा चिकित्सा में भी पर्याप्त सफलता मिलने लगी है। ये रोगजनक जीवाणु अत्यंत सूक्ष्म होते हैं और केवल [[सूक्ष्मदर्शी]] द्वारा ही देखे जा सकते हैं। इसलिए इनको जीवाणु कहते हैं। सूक्ष्माकार के ही कारण इनकी लंबाई [[माइक्रॉन|माइक्रोन]] में बतलाई जाती है। ये जीव वर्ग के एक कोशिकावाले अतिसूक्ष्म जीव होते हैं।