ज्हाझक्हाक्रुब्हो
ज्हाझक्हाक्रुब्हो 28 जुलाई 2014 से सदस्य हैं
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* अजहर हाशमी, हिन्दी संपादक
{{cquote|देश स्वाधीन है परंतु वैचारिक और मानसिक दृष्टि से हम आज भी दास हैं। इसी कारण हिन्दी को 'कू़ड़े-करकट का ढेर' और अंग्रेज़ी को 'अमृत-सागर' समझने की हमारी मान्यता आज भी नहीं बदली है। हिन्दी भाषा को, अब अंग्रेज़ी से नहीं, भारतीयों(!) से भय है।}}
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