"चाणक्यनीति": अवतरणों में अंतर

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चाणक्य का समय ई.स. पूर्व ३२६ वर्ष का माना जाता है। अपने निवासस्थान पाटलीपुत्र (पट़ना) से तक्षशीला प्रस्थान कर उन्होंने वहाँ विद्या प्राप्त की। अपने प्रौढ़ज्ञान से विद्वानों को प्रसन्न कर वे वहीं पर राजनीति के प्राध्यापक बने। लेकिन उनका जीवन, सदा आत्मनिरिक्षण में मग्न रहता था। देश की दुर्व्यवस्था देखकर उनका हृदय अस्वस्थ हो उठता; कलुषित राजनीति और सांप्रदायिक मनोवृत्ति से त्रस्त भारत का पतन उनसे सहन नहीं हो पाता था। अतः अपनी दूरदर्शी सोच से, एक विस्तृत योजना बनाकर, देश को एकसूत्र में बाँधने का असामान्य प्रयास उन्होंने किया।
 
भारत के अनेक जनपदों में वे घूमें। जनसामान्य से लेकर, शिक्षकों एवं सम्राटों तक में सोयी हुई राष्ट्र-निष्ठा को उन्होंने जागृत किया। इस राजकीय एवं सांस्कृतिक क्रांति को स्थिर करने, अपने गुणवान और पराक्रमी शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध के सिंहासन पर स्थापित किया। चाणक्य यानियाने स्वार्थत्याग, निर्भीकता, साहस एवं विद्वत्ता की साक्षात् मूरत !
 
मगध के महामंत्री होने पर भी वे सामान्य कुटिया में रहते थे। चीन के प्रसिद्ध यात्री फाह्यान ने यह देखकर जब आश्चर्य व्यक्त किया, तब महामंत्री का उत्तर था "जिस देश का महामंत्री (प्रधानमंत्री-प्रमुख) सामान्य कुटिया में रहता है, वहाँ के नागरिक भव्य भवनों में निवास करते हैं; पर जिस देश के मंत्री महालयों में निवास करते हैं, वहाँ की जनता कुटिया में रहती है। राजमहल की अटारियों में, जनता की पीडा का आर्त्तनाद सुनायी नहीं देता।”
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4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
 
5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्यकर्त्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।
 
6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्त्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
 
7. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंदसंबंध में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
 
8. चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।