"त्रिलोचन शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की [[प्रगतिशील त्रयी]] के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ [[नागार्जुन]] व [[शमशेर बहादुर सिंह]] थे।<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/12/071209_trilochan_death.shtml|title= नहीं रहे जनपदीय कवि त्रिलोचन |accessmonthday=[[10 दिसंबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एसएचटीएमएल|publisher= बीबीसी}}</ref>
== जीवन परिचय ==
[[उत्तर प्रदेश]] के [[सुल्तानपुर]] जिले के कठघरा चिरानी पट्टी में जगरदेव सिंह के घर 20 अगस्त 1917 को जन्मे त्रिलोचन शास्त्री का मूल नाम वासुदेव सिंह था।<ref>{{cite web |url= http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/trilochan/index.htm|title= त्रिलोचन|accessmonthday=[[10 दिसंबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher= अनुभूति}}</ref> उन्होंने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] से एमए अंग्रेजी की एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।
 
उत्तर प्रदेश के [[सुल्तानपुर]] जिले के छोटे से गांव से बनारस विश्वविद्यालय तक अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालांकि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था, भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे। सागर के मुक्तिबोध स्रजन पीठ पर भी वे कुछ साल रहे।
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== कार्यक्षेत्र ==
त्रिलोचन शास्त्री हिंदी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता माने जाते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे खासे सक्रिय रहे है। उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
 
त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिंदी व उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुडे़ रहे। उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की।<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2005/05/050504_trilochan_poet.shtml|title= हिंदी सॉनेट के शिखर पुरुष
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कैसी होती है वह क्या है वह नहीं मानता<ref>{{cite web|url= http://www2.dw-world.de/hindi/Welt/1.231388.1.html |title= त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे|accessmonthday=[[10 दिसंबर]]| accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल| publisher= डॉयशेवेले}}</ref>
 
त्रिलोचन ने लोक भाषा अवधी और प्राचीन संस्कृत से प्रेरणा ली, इसलिए उनकी विशिष्टता हिंदी कविता की परंपरागत धारा से जुड़ी हुई है। मजेदार बात यह है कि अपनी परंपरा से इतने नजदीक से जुड़े रहने के कारण ही उनमें आधुनिकता की सुंदरता और सुवास थी।
 
प्रगतिशील धारा के कवि होने के कारण त्रिलोचन मार्क्सवादी चेतना से संपन्न कवि थे, लेकिन इस चेतना का उपयोग उन्होंने अपने ढंग से किया। प्रकट रूप में उनकी कविताएं वाम विचारधारा के बारे में उस तरह नहीं कहतीं, जिस तरह नागार्जुन या केदारनाथ अग्रवाल की कविताएं कहती हैं। त्रिलोचन के भीतर विचारों को लेकर कोई बड़बोलापन भी नहीं था। उनके लेखन में एक विश्वास हर जगह तैरता था कि परिवर्तन की क्रांतिकारी भूमिका जनता ही निभाएगी।<ref>{{cite web |url= http://www2.dw-world.de/hindi/Welt/1.231388.1.html|title= त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे|accessmonthday=[[10 दिसंबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|publisher= डॉयशेवेले}}</ref>
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* [http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/trilochan/index.htm त्रिलोचन की रचनाएँ अनुभूति में]
* [http://uday-prakash.blogspot.com/2007/10/blog-post_10.html त्रिलोचन का कुछ ही दिन पूर्व लिया गया वीडियो साहित्यकार उदय प्रकाश के चिट्ठे पर]
 
* [http://www.hindikunj.com त्रिलोचन शास्त्री (हिंदीकुंज में)]
{{साँचा:प्रगतिशील कवि}}
 
[[श्रेणी:प्रगतिशील कवि]]