"पक्षिपटबंधन": अवतरणों में अंतर

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== पटबंधन के उपयोग ==
पक्षिजीवन के कुछ पहलू सदैव से रहस्यमय रहे हैं। इन्हें सुलझाने के लिए [[अरस्तू]] (Aristotle) से लेकर अब तक के प्रकृतिवादी प्रयत्न करते आ रहे हैं। पिछली१९वीं शताब्दी में [[यूरोप]] में जे. ए. पामन (J. A. Palmen, सन्‌ 1874), वाइसमान (Weissman, सन्‌ 1891), ए. वॉन मिडेनडॉर्फ (A. von Middendorff, सन्‌ 1885), एच. गाटके (H. Gatke, सन्‌ 1891) आदि जैसे पक्षिशास्त्री पक्षिप्र्व्राजनपक्षिप्रवजन के रहस्य की परिकल्पना में लीन थे। परंतु पक्षिपटिबंधन के आगमन के बाद ही इसके पूर्व का उनका ज्ञान बहुत कुछ अव्यवहार्य या लुप्त हो गया। इसके अतिरिक्त पक्षिपटबंधन पक्षिजीवन के अध्ययन में अनेक बातों के ज्ञान की प्राप्ति में उपयोगी सिद्ध हुआ है, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं :
 
1. प्रावजन पंथ की जानकारी, अर्थात्‌ पक्षी लंबे पथ अपनाते हैं या छोटे, समुद्र के ऊपर होकर जाते हैं या धरातल के ऊपर, निर्धारित पथ से जाते हैं अथवा प्रत्येक वर्ष पथ बदलते रहते हैं।
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5. दूर या भिन्न स्थानों पर छोड़े जाने पर अपने जन्मस्थान पर लौटने तथा पथ पहचानने की पक्षियों की क्षमता का ज्ञान।
 
6. अल्प आयु तथा पूर्ण विकसित (या वृद्धिप्राप्त) पक्षियों के प्र्व्राजनप्रवजन में अंतर का ज्ञान।
 
7. पक्षियों की आयु, निर्मोचन (moulting), मृत्यु आदि का ज्ञान।