"नौशाद": अवतरणों में अंतर
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[[नौशाद अली]] (1919-2008) [[हिन्दी सिनेमा|हिन्दी फिल्मों]] के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे । पहली फिल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है। ▼
▲पहली फिल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है।
==जीवन==
नौशाद का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वह 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई कूच कर गए थे। शुरुआती संघर्षपूर्ण दिनों में उन्हें उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, उस्ताद झण्डे खां और पंडित खेम चन्द्र प्रकाश जैसे गुणी उस्तादों की सोहबत नसीब हुयी।
==संगीत ==
उन्हें पहली बार स्वतंत्र रूप से 1940 में 'प्रेम नगर' में संगीत देने का अवसर मिला, लेकिन उनकी अपनी पहचान बनी 1944 में प्रदर्शित हुई 'रतन' से जिसमें जोहरा बाई अम्बाले वाली, अमीर बाई कर्नाटकी, करन दीवान और श्याम के गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए और यहीं से शुरू हुआ कामयाबी का ऐसा सफर जो कम लोगों के हिस्से ही आता है।
अंदाज, आन, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुगले आजम, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, तांगेवाला, पालकी, आईना, धर्म कांटा, पाकीजा (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया। ▼
उन्होंने छोटे पर्दे के लिए 'द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' और 'अकबर द ग्रेट' जैसे धारावाहिक में भी संगीत दिया। बहरहाल नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म के सुपर फ्लाप होने का बेहद अफसोस रहा। यह फिल्म थी सौ करोड़ की लागत से बनने वाली अकबर खां की ताजमहल जो रिलीज होते ही औंधे मुंह गिर गयी। मुगले आजम को जब रंगीन किया गया तो उन्हें बेहद खुशी हुयी ।
==फिल्मी सफ़र ==
▲[[अंदाज]], [[आन]], [[मदर इंडिया]], [[अनमोल घड़ी]], [[बैजू बावरा]], [[अमर]], [[स्टेशन मास्टर]], [[शारदा]], [[कोहिनूर]], [[उड़न खटोला]], [[दीवाना]], [[दिल्लगी]], [[दर्द]], [[दास्तान]], [[शबाब]], [[बाबुल]], [[मुगले आजम]], [[दुलारी]], शाहजहां, [[लीडर]], [[संघर्ष]], [[मेरे महबूब]], [[साज और आवाज]], [[दिल दिया दर्द लिया]], [[राम और श्याम]], [[गंगा जमुना]], [[आदमी]], [[गंवार]], [[साथी]], [[तांगेवाला]], [[पालकी]], [[आईना]], [[धर्म कांटा]], [[पाकीजा]] (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया।
मारफ्तुन नगमात जैसी संगीत की अप्रतिम पुस्तक के लेखक ठाकुर नवाब अली खां और नवाब संझू साहब से प्रभावित रहे नौशाद ने मुम्बई में मिली बेपनाह कामयाबियों के बावजूद लखनऊ से अपना रिश्ता कायम रखा। मुम्बई में भी नौशाद साहब ने एक छोटा सा लखनऊ बसा रखा था जिसमें उनके हम प्याला हम निवाला थे- मशहूर पटकथा और संवाद लेखक वजाहत मिर्जा चंगेजी, अली रजा और आगा जानी कश्मीरी (बेदिल लखनवी), मशहूर फिल्म निर्माता सुलतान अहमद और मुगले आजम में संगतराश की भूमिका निभाने वाले हसन अली 'कुमार'।
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