"कुबेर नाथ राय": अवतरणों में अंतर

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== साहित्यिक अवदान ==
{{इसका कापीराइट आशीष प्रकाशन, कानपुर के पास है, यह पूरा अंश 'कुबेरनाथ राय परिचय और पहचान' पुस्तक की अविकल प्रस्तुति है}}
 
{{कॉपीराइटउल्लंघन}}कुबेरनाथ राय आठवीं कक्षा से ही ''विशाल भारत'' और ''[[माधुरी]]'' नामक पत्रिकाओं में छपने लगे थे।<ref>राजीवरंजन, रस आखेटक कुबेरनाथ राय, नवनिकष, मार्च,२०१०, पेज, २२</ref> उन्होंने छात्र-जीवन में क्विंस कालेज की ''साइंस मैग्जीन'' का सम्पादन किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पत्रिका ''प्रज्ञा'' में भी वे लिखते रहे।<ref>ललित निबन्ध के महाप्राज्य शिखर पुरुष: कुबेरनाथ राय, बात सामयिकी, (सम्पादक) सन्हैयालाल ओझा, कोलकाता, मार्च-१९९७, पेज २९</ref> लेकिन उनके लेखन की व्यवस्थित शुरूआत 1962 में हुई। यह एक संयोग से जुड़ा है। इसी वर्ष संसद में भारत के शिक्षामंत्री प्रो॰ हुमायुँ कबीर का भारत के इतिहास लेखन पर एक वक्तव्य आया। कुबेरनाथ राय इससे सहमत नहीं थे। इसके प्रतिवाद में उन्होंने ''इतिहास और शुक-सारिका कथा'' शीर्षक एक निबन्ध ''[[सरस्वती पत्रिका]]'' में लिख भेजा।<ref>बरमेश्वर नाथ राय, कुबेरनाथ राय: एक परिचय, भारतीय ज्ञानपीठ (मूर्ति देवी पुरस्कार,१९९२),1993</ref> उन दिनों इस पत्रिका के सम्पादक [[श्रीनारायण चतुर्वेदी]] थे। उन्होंने इस निबन्ध को प्रकाशित किया और इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि निरन्तर लिखते रहें। इस घटना का स्मरण करते हुए कुबेरनाथ राय ने ''प्रियानीलकंठी'' की भूमिका और ''अन्त में'' में लिखा है- "''प्रोफेसर हुमायुँ कबीर की इतिहास सम्बन्धी ऊल-जलूल मान्यताओं पर मेरे तर्कपूर्ण और क्रोधपूर्ण निबन्ध को पढ़कर पं॰ [[श्रीनारायण चतुर्वेदी]] ने मुझे घसीटकर मैदान में खड़ा कर दिया और हाथ में धनुष-बाण पकड़ा दिया। अब मैं अपने राष्ट्रीय और साहित्यिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग था।''"<ref>और अन्त में, प्रिया नीलकण्ठी, कुबेर नाथ राय, भारतीय ज्ञानपीठ, 1969, पेज ॰80,</ref>