"भारतीय विवाह": अवतरणों में अंतर

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='''भारतीय विवाह'''=
विवाह दो वक़्तियों का सामाजिक, धार्मिक या/तथा कानूनी रूप से साथ रेहने का सम्बन्ध है। विवाह मानव समाज की अतयंत महत्वपूण प्रथा है। विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। दो प्राणी अपने अलग अलग आस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई क निर्माण करते हैं। स्त्री और पुरुष दोनो मै परमात्मा ने कुछ विशेषतायें और कुछ अपूर्णताऐं दे रखी हैं। विवाह सम्मिलन से एक दूसरे की अपूर्णताओं को अपनी विशेषताओं से पुर्ण करते हैं। इसलिये विवाह को मानव जीवन में एक महत्वपूण स्थान दिया गया है। यह समाज का निर्माण करनेवाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। इसे मानव जाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान साधन माना जाता है। हिन्दु धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर और सात पाॅच वचन सुनाये जाते है दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। भारत मैं अनेक राज्य है और इन अनेक राज्यों में अनेक तरह के लोग रह्ते हैं और उसके साथ साथ उनके अलग अलग विवाह के तरीके। इस लेख मैं हम भारत के कुछ राज्य के विवाह के बारे में चर्चा करेंगे।
 
=पंजाबी विवाह:=