"वो कौन थी (1964 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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'''वो कौन थी''' १९६४ में [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] में बनी एक ससपॅंस फिल्म है जिसका निर्देशन [[राज खोसला]] ने किया है और यह फ़िल्म [[साधना शिवदासानी|साधना]] और राज खोसला की ससपॅंस तिगड़ी की पहली फ़िल्म थी। इसके अलावा इन दोनों नें इस श्रृंखला में [[मेरा साया (1966 फ़िल्म)| मेरा साया]] और [[अनीता (1967 फ़िल्म)| अनीता]] फ़िल्में बनाई हैं। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार साधना और ([[मनोज कुमार]]) हैं।
'''वो कौन थी''' 1964 [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]]में बनी एक ससपॅंस फिल्म है।
 
== संक्षेप ==
फ़िल्म की शुरुआत एक तूफ़ानी रात से होती है जहाँ भयंकर बारिश पड़ रही है। डा॰ आनन्द (मनोज कुमार) अपनी कार में जा रहे हैं। सामने एक लड़की (साधना) आ जाती है। डा॰ आनन्द अपनी कार रोक कर उसको अपनी कार से उसके गंतव्य तक छोड़ देने का प्रस्ताव रखते हैं जिसे वह इस शर्त पर मान लेती है कि डा॰ आनन्द उससे कोई भी सवाल नहीं करेंगे। जैसे ही वह लड़की कार में बैठती है अपने आप ही कार के वायपर्स बंद हो जाते हैं। डा॰ आनन्द कहते हैं कि उन्हें अब कार के वायपर्स बंद हो जाने के कारण आगे का रास्ता नहीं दीख रहा है पर वह लड़की कहती है कि उसे आगे का रास्ता साफ़ दिखाई दे रहा है और वह डा॰ आनन्द को गड्ढों इत्यादि से बचाती हुयी आगे लेकर चलती है। रास्ते में जब डा॰ आनन्द उस लड़की से उसका नाम पूछते हैं तो वह अपना नाम संध्या बताती है और जब डा॰ आनन्द उसकी अंगुली से निकलते ख़ून के बारे में पूछते हैं तो वह जवाब देती है कि पेंटिंग के लिए पॅंसिल छीलते समय ब्लेड से उसकी अंगुली कट गई है। जब डा॰ आनन्द उस लड़की से उस चोट में पट्टी बांधने की बात कहते हैं तो वह लड़की कहती है कि उसे ख़ून अच्छा लगता है।
अचानक एक वीरान जगह पर वह लड़की डा॰ आनन्द को रुकने को कहती है और वह जगह क़ब्रिस्तान होती है। डा॰ आनन्द उस लड़की से पूछता है कि यहाँ कहाँ जाना है और वह लड़की उस धुंध में क़ब्रिस्तान के अंदर चली जाती है और क़ब्रिस्तान का दरवाज़ा अपने आप खुलता और बंद हो जाता है और पार्श्व
यहाँ से फ़िल्म की कास्टिंग शुरु होती है।
डा॰ आनन्द जिस अस्पताल में काम करते हैं वहाँ एक वकील डा॰ सिंह ([[के एन सिंह]]) (जो कि उस अस्पताल के मुख्य अधिकारी हैं) से आकर कहता है कि यदि डा॰ आनन्द का मानसिक संतुलन ठीक है तो उनके किसी रिश्तेदार ने उनके लिये लाखों की जायदाद छोड़ी है अन्यथा यह जायदाद किसी दूसरे रिश्तेदार को मिल जायेगी क्योंकि डा॰ आनन्द के ख़ानदान में मानसिक असंतुलन का इतिहास है । डा॰ सिंह हँसकर उस वकील को वह सर्टिफ़िकेट दे देते हैं। डा॰ सिंह की लड़की डा॰ लता भी उसी अस्पताल में काम करती है और मन ही मन डा॰ आनन्द को चाहती भी है। डा॰ आनन्द को मिलने के लिये अस्पताल में उनका दूर का भाई रमेश ([[प्रेम चोपड़ा]]) भी आता है।
एक तूफ़ानी रात को डा॰ आनन्द के घर एक व्यक्ति का फ़ोन आता है कि कोई बहुत बीमार है और उनको तुरन्त आना होगा। डा॰ आनन्द उस व्यक्ति के साथ एक वीरान हवेली में जाते हैं। वहाँ जब वे उस व्यक्ति के साथ हवेली के अंदर जाते हैं तो विलाप की आवाज़ आ रही होती है। जब डा॰ आनन्द उस कमरे में पहुँचते हैं तो देखते हैं कि वही संध्या मरी पड़ी है और उसकी माँ विलाप कर रही है।
डा॰ आनन्द की एक प्रेमिका है जिसका नाम है सीमा ([[हेलन]])। उसका ख़ून हो जाता है। डा॰ आनन्द इस बात से उदासी में चले जाते हैं। उनका विवाह उनकी माँ के कहने पर जिस लड़की से होता है उसका नाम भी इत्तफ़ाक़ से संध्या होता है और उसकी सूरत हूबहू उसी संध्या से मिलती है जो फ़िल्म की शुरुआत में उनसे मिली थी। उसे देखकर अब डा॰ आनन्द का मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है और उनको डा॰ सिंह के कहने पर डा॰ लता और उनकी माँ के साथ [[शिमला]] भेज दिया जाता है जहाँ फिर वही लड़की उनको दीखती है और वह उसके बहकावे में ख़ुदक़शी करने जा ही रहे होते हैं कि तभी डा॰ लता उनको बचा लेती हैं।
वापस आकर डा॰ आनन्द अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं लेकिन एक दिन संध्या उनको बहलाकर उसी हवेली के छज्जे तक ले कर जाती है लेकिन वहाँ तभी दूसरी संध्या आ जाती है और डा॰ आनन्द को आगाह कर देती है। दोनों संध्याओं को एक साथ देखकर डा॰ आनन्द इस फ़रेबी संध्या की ओर बढ़ते हैं लेकिन तभी फ़रेबी संध्या का पांव छज्जे से अंदर धूप आने वाले कांच पर पड़ते हैं और वह गिरकर मर जाती है।
फिर रमेश डा॰ आनन्द के सामने आता है और बताता है कि वह जायदाद उसे मिल जाती यदि डा॰ आनन्द पागल हो जाते या मर जाते। दोनों में हाथापाई होती है और अंत में पुलिस पहुँच जाती है। अंत में डा॰ आनन्द और संध्या का मिलन हो जाता है।
== चरित्र ==
== मुख्य कलाकार ==