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[[चित्र:Ellora cave10 002.jpg|right|thumb|300px|एलोरा (गुफा संख्या. १०) - अष्टभुजाकार स्तम्भों वाला चैत्य]]
[[चित्र:Aurangabad - Ajanta Caves (36).JPG|right|thumb|300px|अजन्ता का चैत्य संख्या १९]]
[[चित्र:Cave 26, Ajanta.jpg|अजन्ता गुफा संख्या २६ का चैत्य हाल]]
एक '''चैत्य''' एक [[बौद्ध]] या [[जैन]] मंदिर है जिसमे एक [[स्तूप]] समाहित होता है। भारतीय वास्तुकला से संबंधित आधुनिक ग्रंथों में, शब्द '''चैत्यगृह''' उन पूजा या प्रार्थना स्थलों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जहाँ एक स्तूप उपस्थित होता है। चैत्य की वास्तुकला और स्तंभ और मेहराब वाली रोमन डिजाइन अवधारणा मे समानताएँ दिखती हैं।
 
== परिचय ==
'''चैत्य''', [[संस्कृत]] '[[चिता]]' से व्युत्पन्न ([[पालि]] 'चेतीय')। इस शब्द का संबंध मूलत: चिता या चिता से संबंधित वस्तुओं से है (चितायांभव: चैत्य:)। चिता स्थल पर या मृत व्यक्ति की पावन राख के ऊपर स्मृति-भवननिर्माण अथवा वृक्षारोपण की प्राचीन परंपरा का उल्लेख ब्राह्मण, बौद्ध और जैन साहित्यों में हुआ हैं। [[रामायाणरामायण]], [[महाभारत]] और [[भगवद्गीता]] में इस शब्द का प्रयोग पावन वेदी, देवस्थान, प्रासाद, धार्मिक वृक्ष आदि के लिए हुआ है- ''देवस्थानेषु चैत्येषु नागानामालयेषु च'' (महा. ३.१९०-६७), प्रासादगोपुरसभाचैत्यदेव गृहादिषु, (भाग. ९-११२७), कञ्चिच्चैत्यशतैर्जुष्ट: (रामायण २-१००-४३); चैत्ययूपांकिता भूमिर्यस्येयं सवनाकरा (महा. १-१-२२९)।
 
बौद्धों और जैनों में भिक्खु या संन्यासी के समाधिस्थल पर पावन स्मृति-भवन-निर्माण की परंपरा ही चल पड़ी थी। फलत: उनके साहित्य में इस तरह के प्रसंगों का बहुश: उल्लेख हुआ है। धीरे-धीरे इस शब्द का प्रयोग स्तूप के लिये होने लगा। बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के साथ चैत्यनिर्माण का प्रवेश अन्य देशों में हुआ। [[श्रीलंका]] में इसके लिए 'दागबा' (सं. धातुगर्भ) और [[तिब्बती]] में 'दुंगतेन' शब्द शब्द प्रचलित हुए। चैत्य शब्द का प्रयोग कालांतर में किसी पावन स्थान, मंदिर, अस्थिपात्र अथवा पवित्र वृक्ष के लिए भी होने लगा।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/चैत्य" से प्राप्त