"अनुष्टुप छंद": अवतरणों में अंतर

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'''अनुष्टुप छन्द''' [[संस्कृत]] काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त [[छन्द]] है, इसका [[वेद|वेदों]] में भी प्रयोग हुआ है ।।है।। [[रामायण]], [[महाभारत]] तथा [[गीता]] के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही हैं।इसमें कुल - ३२ वर्ण होते हैं - आठ वर्णों के चार पाद। [[हिन्दी]] में जो लोकप्रियता और सरलता [[दोहा]] की है वही संस्कृत में अनुष्टुप की है। प्राचीन काल से ही सभी ने इसे बहुत आसानी के साथ प्रयोग किया है। [[गीता]] के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं। आदि कवि [[वाल्मिकी]] द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक (''मा निषाद प्रतिष्ठा'') भी अनुष्टुप छन्द में है।
 
==संरचना==
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उदाहरण -[[ ऋग्वेद]] में मिलता है (३.५३.१२)
 
य इमे रोदसी उभे अहमइन्द्रम तुष्टवम्तुष्टवम्। <br>
विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मिदं भारतं जनम्जनम्। ।।
 
वेदों में इसके विभेद स्वरूप महापद पंक्ति (३१ वर्णों वाला) और विराट् भी अनुष्टुप के ही रूप माने गए हैंहैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==