"जीव": अवतरणों में अंतर
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अद्वैतवादी औपनिषदिक परंपरा, श्रमण परंपरा (बौद्ध-जैन) एवं सूफी परंपरा के अनुयायी ज्ञान मार्ग का अनुसरण करते हैं। ज्ञातव्य है कि भक्तिमार्ग का पथिक सेवक-सेव्य भाव अपनाकर परम लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। इस मार्ग का पथिक स्वयं को सेवक और ईश्वर को सेव्य मानता है। इसी प्रकार ज्ञानमार्गका पथिक अपनी साधना के बल पर परम लक्ष्य (मोक्ष, निर्वाण, कैवल्य) की सिद्धि करता है; आत्मसाक्षातकरता है; परमसत्यका दर्शन करता है। अद्वैतमार्गानुगामीसाधक की दृष्टि में ईश्वर एवं जीव का भेद ही समाप्त हो जाता है। जीव ही ईश्वर का रूप धारण कर लेता है।
[[श्रेणी:ज्योतिष]]
[[श्रेणी:आगरा]]
[[श्रेणी:भदावर]]
[[श्रेणी:उत्तर प्रदेश]]
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