"भ्रमरगीत": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 7:
 
भ्रमरगीत में गोपियों की वचनवक्रता अत्यंत मनोहारिणी है। ऐसा सुंदर [[उपालम्भ काव्य|उपालंभ काव्य]] और कहीं नहीं मिलता।
: ''उधो ! तुम अपनी जतन करौ
: ''हित की कहत कुहित की लागै,
: ''किन बेकाज ररौ ?
: ''जाय करौ उपचार आपनो,
: ''हम जो कहति हैं जी की।
: ''कछू कहत कछुवै कहि डारत,
: ''धुन देखियत नहिं नीकी।
 
== जगन्नाथदास रत्नाकर का भ्रमरगीत ==