"भ्रमरगीत": अवतरणों में अंतर
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== सूरदास का भ्रमरगीत ==
[[सूरसागर]] सूरदासजी का प्रधान एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग 'कृष्ण की बाल-लीला’ और '
भ्रमरगीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें [[मथुरा]] से [[कृष्ण]] द्वारा उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजते हैं। उद्धव [[योग]] और [[ब्रह्म]] के ज्ञाता हैं। उनका प्रेम से दूर-दूर का कोई सम्बन्ध नहीं है। जब गोपियाँ व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियाँ उन्हें 'काले भँवरे' की [[उपमा]] देती हैं। इन्हीं लगभग 100 पदों का समूह भ्रमरगीत या 'उद्धव-संदेश' कहलाता है।
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