"हावड़ा": अवतरणों में अंतर

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मौजूदा हावड़ा नगर का ज्ञात इतिहास करीब 500 साल पुराना है। परंतु हवड़ा ज़िला क्षेत्र का इतिहास प्राचीन बंगाली राज्य '''भुरशुट''' (बंगाली: ভুরশুট) से जुड़ा है, जो प्राचीन काल से 15वीं शताब्दी तक, [[हावड़ा जिला]] और [[हुगली जिला|हुगली ज़िला]] के क्षेत्र पर शासन करती थी। सन 1569-75 में भारत भ्रमण कर रहे [[वेनिस]] के एक भ्रमणकर्ता '''सेज़र फ़ेडरीची''' ([[अंग्रेज़ी]]: Caesar Federichi) ने अपने भारत दौरे की अपनी दैनिकी में 1578 ई में ''बुट्टोर'' (Buttor) नामक एक जगह का वर्णन किया था। उनके विवरण के अनुसार वह एक ऐसा स्थान था जहां बहुत बड़े जहाज़ भी यात्रा कर सकता थे और वह सम्भवतः एक वाणिज्यिक बंदरगाह भी था। उनका यह विवरण मौजूदा हावड़ा के '''बाटोर''' इलाके का है। बाटोर का उल्लेख 1495 में बिप्रदास पीपिलई द्वारा लिखि बंगाली कविता '''मानसमंगल''' मैं भी है।
 
सन 1713 मैं मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब के पोते शहंशाह फर्रुख़शियार के राजतिलक के मौक़े पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने मुग़ल दरबार में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसका उद्धेश्य हुगली नदी के पूर्व के 34 और पश्चिम के पांच गांव: सलकिया (Salica), हरिराह (Harirah अथवा हावड़ा), कसुंडी (Cassundea) बातोर (battar) और रामकृष्णपुर (Ramkrishnopoor) को मुगलों से खरीदना था। शहंशाह ने केवल पूर्व के 34 गांवों पर संधि की। कंपनी के पुराने दस्तावेज़ों में इन गांवों का उल्लेख है। आज ये सारे गांव हावड़ा शहर के क्षेत्र और उपनगर हैं। सन 1728 हावड़ा के ज्यादातर इलाके "बर्धमान" और "मुहम्मन्द अमीनपुर" ज़मीनदारी का हिस्सा थे। [[प्लासी का युद्ध|प्लासी के युद्ध]] में पराजय के पश्चात, [[बंगाल के नवाब]] [[मीर क़ासिम]] ने 11 अक्टूबर 1760 में एक संधि द्वारा हुगली और हावड़ा के सारे इलाके ब्रिटिश कंपनी को सौंप दिये, तत्पश्चात हावड़ा को [[बर्धमान जिला |बर्धमान ज़िले]] का हिस्सा बना दिया गया। सन 1787 में हुगली ज़िले को बर्धमान से अलग किया गया और 1843 में हावड़ा को [[हुगली जिला|हुगली ज़िला]] से अलग कर [[हावड़ा जिला]] बनाया गया, जो अब भी कायम है।
 
सन 1854 में [[हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन]] को स्थापित किया गया और उसी के साथ शुरू हुआ [[हावड़ा]] नगर का औद्यौगिक विकास, जिसने शहर को कलकत्ता के एक आम से उपनगर को भारतवर्ष का एक महत्वपूर्ण औद्यौगिक केन्द्र बना दिया। धीरे-धीरे हावड़ा के क्षेत्र में कई प्रकार के छोटे, मध्य और भारी प्रौद्यौगिक उद्योग खुल गए। यह विकास दूसरे विश्व युद्ध तक जारी रहा जिसका नतीजा हुआ, नगर का हर दिशा में त्रैलोकिक विस्तार। इस प्रकार के औद्यौगिक विस्फोट का एक पहलू अत्यन्त अप्रवासन और उस से पैदा हुआ नगर का अनियमित विस्तार भी था।