"ईश्वर (भारतीय दर्शन)": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: '''ईश्वर''' शब्द भारतीय दर्शन तथा अध्यात्म शास्त्रों में जगत् की...
 
No edit summary
पंक्ति 20:
 
[[रामानुज संप्रदाय]] में यामुन मुनि के सिद्धित्रय में ईश्वरसिद्धि एक प्रकरण है। लोकाचार्य के तत्वत्रय में तथा [[वेदांतदेशिक]] के तत्वमुक्ताकलाप, न्यायपरिशुद्धि आदि में भी ईश्वरसिद्धि विवेचित है। यह प्रसिद्धि है कि खंडनखंडकार श्रीहर्ष ने भी 'ईश्वरसिद्धि' नामक कोई ग्रंथ लिखा था। शैव संप्रदाय में नरेश्वरपरीक्षा प्रसिद्ध ग्रंथ है। [[प्रत्यभिज्ञा दर्शन]] में ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी का स्थान भी अति उच्च है। इसके मूल में उत्पलाचार्य की कारिकाएँ हैं और उनपर [[अभिनवगुप्त|अभिनवगुप्तादि]] विशिष्ट विद्वानों की टिप्पणियाँ तथा व्याख्याएँ हैं। बौद्ध तथा जैन संप्रदायों ने अपने विभिन्न ग्रंथों से ईश्वरवाद के खंडन का प्रयत्न किया है। ये लोग ईश्वर को नहीं मानते थे किन्तु सर्वज्ञ को मानते थे। इसीलिए ईश्वरतत्व का खंडन कर सर्वज्ञ सिद्धि के लिए इन संप्रदायों द्वारा ग्रंथ लिखे गए। महापंडित [[रत्नकीर्ति]] का 'ईश्वर-साधन-दूषण' और उनके गुरु गौड़ीय ज्ञानश्री का 'ईश्वरवाददूषण' तथा 'वार्तिक शतश्लोकी' व्याख्यान प्रसिद्ध हैं। [[ज्ञानश्री]] विक्रमशील विहार के प्रसिद्ध द्वारपंडित थे। जैनों में [[अकलंक]] से लेकर अनेक आचार्यों ने इस विषय की आलोचना की है। सर्वज्ञसिद्धि के प्रसंग में बौद्ध विद्वान् रत्नकीर्ति का ग्रंथ महत्वपूर्ण है। मीमांसक [[कुमारिल भट्ट|कुमारिल]] ईश्वर तथा सर्वज्ञ दोनों का खंडन करते हैं। परवर्ती बौद्ध तथा जैन पंडितों ने सर्वज्ञखंडन के अंश में कुमारिल की युक्तियों का भी खंडन किया है।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[ईश्वर]]
*[[ईसाई मत में ईश्वर]]
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]