"शक्ति (देवी)": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
'''शक्ति''', [[ईश्वर]] की वह कल्पित [[माया]] है जो उसकी आज्ञा से सब काम करनेवाली और [[सृष्टि]]रचना करनेवाली मानी जाती है। यह अनंतरूपा और अनंतसामर्थ्यसंपन्ना कही गई है। यही शक्ति जगत्रूप में व्यक्त होती है और [[प्रलय]]काल में समग्र चराचर जगत् को अपने में विलीन करके अव्यक्तरूपेण स्थित रहती है। यह जगत् वस्तुत: उसकी व्यवस्था का ही नाम है।
[[गीता]] में वर्णित योगमाया यही शक्ति है जो व्यक्त और अव्यक्त रूप में हैं। [[कृष्ण]] 'योगमायामुवाश्रित:' होकर ही अपनी लाला करते हैं। [[राधा]] उनकी आह्वादिनी शक्ति है। [[शिव]] शक्तिहीन होकर कुछ नहीं कर सकते। शक्तियुक्त शिव ही सब कुछ करने में, न करने में, अन्यथा करने में समर्थ होते हैं। इस तरह [[भारतीय दर्शन|भारतीय दर्शनों]] में किसी न किसी नाम रूप से इसकी चर्चा है। [[पुराण|पुराणों]] में विभिन्न [[देवता]]ओं की विभिन्न शक्तियों की कल्पना की गई है। इन शक्तियों को बहुधा [[देवी]] के रूप में और मूर्तिमती माना गया है। जैसे, [[विष्णु]] की कीर्ति, कांति, तुष्टि, पुष्टि आदि; [[रुद्र]] की गुणोदरी, गोमुखी, दीर्घजिह्वा, ज्वालामुखी आदि। [[
[[तंत्र]] के अनुसार किसी पीठ की अधिष्ठात्री देवी शक्ति के रूप में कही गई है, जिसकी उपासना की जाती है। इसके उपासक [[शाक्त]] कहे जाते हैं। यह शक्ति भी सृष्टि की रचना करनेवाली और पूर्ण सामर्थ्यसंपन्न कही गई है। [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]], [[जैन धर्म|जैन]] आदि संप्रदायों के तंत्रशास्त्रों में शक्ति की कल्पना की गई है, इन्हें बौद्धाभर्या भी कहा गया है। तांत्रिकों की परिभाषा में युवती, रूपवती, सौभाग्यवती विभिन्न जाति की स्त्रियों को भी इस नाम से कहा गया है और विधिपूर्वक इनका पूजन सिद्धिप्रद माना गया है।
|