"गुर्जर-प्रतिहार राजवंश": अवतरणों में अंतर

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|image_map_caption = गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की सीमा दर्शाता हुआ नक्शा
|capital = [[Kannauj]]
|latd= |latm= |latNS= |longd= |longm= |longEW=
|common_languages = [[संसकृत]], [[गुर्जरी]]
| today = {{IND}}
}}
 
== गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के अघीन व सामन्त गुर्जर वंश ==
{| class="wikitable"
|-
! नाम
|-
| [[चन्देल गुर्जर वंश]]
|-
| [[परमार वंश (गुर्जर)|परमार गुर्जर वंश]]
|-
| [[चौहान गुर्जर वंश]]
|-
| [[चालुक्य गुर्जर वंश]]
|-
| [[गुहिल गुर्जर वंश]]
|-
| [[मोरी गुर्जर वंश]]
|-
| [[तोमर गुर्जर वंश|तंवर गुर्जर वंश]]
|-
| [[खटाणा गुर्जर वंश | हिंदुशाही व खटाणा राजवंश]]
|-
| [[भाटी गुर्जर वंश]]
|-
| [[मैत्रक गुर्जर वंश]]
|-
| [[चप गुर्जर वंश| चावडा व चपराणा वंश]]
|-
| [[भडाणा गुर्जर वंश]]
|-
| [[धामा गुर्जर वंश]]
|}
 
== शासक ==
{{गुर्जर प्रतिहार शासक}}
 
{| class="wikitable"
|-
! नाम !! सन्
|-
| [[नागभट प्रथम|नागभट्ट गुर्जर प्रतिहार]] || 730-760 ई.
|-
| [[ककुष्ठा और देवराज गुर्जर प्रतिहार]] || 760-775 ई.
|-
| [[वत्सराज गुर्जर प्रतिहार]] || 775-810 ई.
|-
| [[नाग भट्ट द्वित्तीय]] || 810-833 ई.
|-
| [[रामभद गुर्जर प्रतिहार]] || 833-836 ई.
|-
| [[गुर्जर सम्राट मिहिर भोज|मिहिर भोज]] || 836-885 ई.
|-
| [[महेंदरपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 885-912 ई.
|-
| [[महिपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 912-944 ई.
|-
| [[महेंदर पाल द्वितीय]] || 944-984 ई.
|-
| [[देवपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 984-990 ई.
|-
| [[विजयपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 990-1005 ई.
|-
| [[राज्यपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 1005-1018 ई.
|-
| [[त्रलोचन पाल गुर्जर प्रतिहार]] || 1018-1025 ई.
|-
| [[यशपाल गुर्जर प्रतिहार]] || 1025-1036 ई.
|}
 
== भडोच के गुर्जर राज्य ==
 
[[चित्र:भडोच का गुर्जर राज्य .jpg|अंगूठाकार|भडोच का गुर्जर राज्य नक्शा]]
 
''भडोच के गुर्जरों का कालक्रम निम्नवत हैं''
{| class="wikitable"
|-
! नाम !! सन्
|-
| दद्दा गुर्जर I || 580 ई.
|-
| जयभट्ट गुर्जर I || 605 ई.
|-
| दद्दा गुर्जर II || 633 ई.
|-
| जयभट्ट गुर्जर II || 655 ई.
|-
| दद्दा गुर्जर III || 680 ई.
|-
| जयभट्ट गुर्जर III || 706-734 ई.
|}
 
== राज्य विस्तार ==
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गुर्जर प्रतिहारों ने [[जोधपुर]] में स्थित मांदव्यपुर (वर्तमान मंदोर) को जीत लिया और यहाँ एक [[दुर्ग]] की स्थापना की। तीसरे के पौत्र नागभट ने जोधपुर में मेड़ांतक (वर्तमान [[मेड़ता]]) में अपनी राजधानी बनाई। यह माना जा सकता है कि हरश्चिन्द्र छठी शताब्दी के मध्य में रहा होगा और नागभट का राज्यकाल उससे एक शताब्दी पीछे निश्चित किया जा सकता है। नागभट का एक उत्तराधिकारी सिलुक, आठवीं शताब्दी के मध्य भाग में अपने वंश के वल्लमंडल नामक राज्य का शासक कहा जाता था। इसी शताब्दी के उत्तरार्ध में वल्लमंडल के प्रतिहारों ने [[मालवा|मालव]] के प्रतिहारों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया, और नवीं शताब्दी के तीसरे चतुर्थांश तक राज्य करते रहे।
 
प्रतिहार राजवंश की एक शाखा, जो मालव में आठवीं शताब्दी के प्रथम भाग से शासन करती रही थी, इसका सबसे प्राचीन ज्ञात सम्राट् नागभट प्रथम था, जो अपने मालव राज्य को [[सिंध]] के अरबों के आक्रमणों से बचाने में सफल हुआ था। नागभट प्रथम दक्षिण के राष्ट्रकूट [[दंतिदुर्ग]] से पराजित हुआ, जिसने अपनी विजय के पश्चात् [[उज्जैन]] में हिरण्यगर्भदान करवाया। आठवीं शताब्दी के अंतिम भाग में इस वंश के राजा वत्सराज ने [[गुर्जरदेश]] राज्य को जीत लिया और उसे अपने राज्य में मिला लिया। उसके पश्चात् उसने उत्तर भारत पर अपनी प्रभुता स्थापित करने के लिये [[बंगाल]] के [[पाल राजवंश|पालों]] से अपनी तलवार आजमाई। उसने [[गंगा]] और [[यमुना]] के बीच के मैदान में पाल धर्मपाल को परास्त कर दिया, और अपने सामंत शार्कभरी के चहमाण दुर्लभराज की सहायता से बंगाल पर विजय प्राप्त की, और इसी प्रकार वह गंगा के डेल्टा तक पहुँच गया। वत्सराज का पुत्र तथा उत्तराधिकारी नागभट द्वितीय, सन् ८०० ई. के लगभग गद्दी पर बैठा था। नागभट द्वितीय का पौत्र [[गुर्जर सम्राट मिहिर भोज]] इस वंश का सबसे महान् सम्राट् समझा जाता है। उसके राज्यकाल में प्रतिहार राज्य पंजाब और गुजरात तक फैल गया। भोज बंगाल के पालों, दक्षिण के राष्ट्रकूटों और दक्षिणी गुजरात से लड़ा,