"व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य": अवतरणों में अंतर

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दुर्गंध, धूलि, धूम्र और प्रधूम (फ़्यूम्स) युक्त दूषित [[संवातन]] (वेंटिलेशन), अपर्याप्त प्रकाश, अत्यधिक शीत, ताप या [[आर्द्रता]], जनसंकुल (ओवरक्राउडेड) कोलाहलपूर्ण कार्यस्थल, अपर्याप्त भोजन, विश्रमा का अभाव, श्रांति (फ़टीग), क्लांति (स्ट्रेन) और दिन रात का घोर कष्टदायक परिश्रम, अल्पतम वेतन या मजदूरी, गंदी बस्तियों में असुविधापूर्ण आवास, शिक्षा, चिकित्सा, सामजिक न्याय और सुरक्षा का अभाव, आकस्मिक दुर्घटनाओं का बाहुल्य आदि के कारण श्रमिकों का जीवन साधारणत: दूभर रहता है। प्रति वर्ष अगणित ग्रामीण अपना परंपरागत कृषि कार्य और कुटीर उद्योग छोड़ बड़े उद्योगों में कार्य करने के लिए नगरों की गंदी बस्तियों में आ बसते हैं और कारखानों में अविराम परिश्रम कर अपना स्वास्थ्य गँवा देते हैं।
 
उद्योगों में काम कर रहे श्रमिकों की संख्या बहुत बड़ी है। इतने व्यक्तियों के स्वास्थ्य तथा कल्याण के प्रति उदासीन रहना नैतिक अपराध है। भारत में अनेक निरोधसाध्य (प्रिवेंटिबिल) रोगों का नियंत्रण नहीं हो पाया, इस कारण श्रमिकों को रोगग्रस्त होने पर अपने धंधे से छुट्टी लेनी पड़ती है। निरोधसाध्य रोगों के कारण उद्योग धंधों में श्रमिकों अनुपस्थिति कल कारखानों की दुर्घटनाओं के कारण होनेवाली अनुपस्थिति से कई गुनी अधिक है। [[मलेरिया]], [[काला आज़ार]] आदि समष्टिगत रोगों (मास डिसीजेज़) के रोगियों की संख्या में पहले की अपेक्षा अब बहुत कमी हो गई है। आंत्रिक ज्वर (एंटेरिक फ़ीवर), प्लूरिसी, अतिसार, ज्वर, आमाशय व्रण (पेप्टिक अल्सर) श्रमिकों की अल्पकालीन अनुपस्थिति के मुख्य कारण हैं। दीर्घकालीन अनुपस्थिति [[क्षयरोग]], श्वासरोग तथा [[कुष्ठ रोग]] के कारण होती है। व्यावसायिक रोगों में त्वचा तथा श्वास के रोगों का बाहुल्य है। क्षय रोग मुख्यत: नगरों में अत्यधिक फैला हुआ है। पूर्ण तथा अल्प बेकारी (अनएंप्लायमेंट ऐंड अंडर-एंप्लायमेंट) इतनी अधिक है कि एक श्रमिक की रोगजन्य अनुपस्थिति की दशा में पचास अन्य श्रमिक प्राप्त हो सकते हैं। छोटे-छोटे उद्योगों में धनाभाव के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा कल्याण के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता। [[सामाजिक सुरक्षा]] का लाभ केवल कुछ लाख श्रमिकों को ही प्राप्त है। श्रमिकों के हितार्थ [[कर्मचारी सरकारी बीमा अधिनियम]] के अंतर्गत जो धन देना पड़ता है उसे देकर उद्योगपतियों की यही धारणा है कि श्रमिकों के हितार्थ अब उनका कोई कर्तव्य शेष नहीं रहा। जो कुछ करना है वह इस अधिनियम के अनुसार स्थापित निगम को ही करना है। इस प्रकार की स्थिति भयावह है।
 
इन कष्टदायक और संकटापन्न परिस्थितियों में काम करनेवाले श्रमिकों की रक्षा के हेतु फैक्टरी अधिनियम के अंतर्गत फैक्टरियों के मुख्य निरीक्षक के अधीन सरकारी निरीक्षक, प्रमाणपत्रदाता सर्जन आदि नियुक्त किए गए हैं जो श्रमिकों को नाना प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त कराते हैं और उनकी सुरक्षा एवं कल्याण संबंधी नियमों का पालन कराते हैं। पूरे १४ वर्ष से कम आयुवाले बालकों को किसी भी कार्य पर नहीं नियुक्त किया जा सकता। १८ वर्ष पूरा कर चुकनेवाले वयस्क श्रमिक कहलाते हैं, इससे कम अवस्था के किशोर श्रमिक कहलाते हैं। किशोर श्रमिकों को शारीरिक स्वस्थता का प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है और एक बिल्ला धारण करना पड़ता है। कोई भी वयस्क श्रमिक सप्ताह में ४८ घंटे से अधिक और एक दिन में साधारणतया ९ घंटे से अधिक समय के लिए काम पार नही लगाया जा सकता। सप्ताह में एक दिन की पूरी छुट्टी और प्रतिदिन अधिक से अधिक पाँच घंटे तक काम कर चुकने पर कम से कम आधे घंटे का विश्राम दिया जाता है। धूति, धूम्र, प्रधूम तथा अत्यधिक शीतोष्णता और आर्द्रता आदि का समुचित प्रबंध कर परिवेश स्वास्थ्यानुकुल और सुविधापूर्ण बनाया जाता है। प्रकाश, संवातन (वेंटिलेशन) और जनसंकुलता संबंधी नियमों का पालन करना पड़ता है। हानि-लाभ-रहित लागत मूल्य पर जलपान, चाय, दूध, शर्बत, मिठाई, नमकीन, चबैना आदि खाद्य और पेय पदार्थों का प्रबंध किया जाता है। बड़ी फैक्ट्रियों में महिला श्रमिकों के दूध पीते बालकों के लिए उपचारिकाओं (नर्सों) की देख-रेख में उपचार गृह चलाए जाते हैं और ऐसे बालकों को दूध पिलाने के लिए श्रमिक माताओं को समय-समय पर छुट्टी दी जाती है। समुचित वेतन, सवेतन छुट्टियाँ तथा अन्य सुविधाएँ भी श्रमिकों को दी गई हैं।