"व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य": अवतरणों में अंतर
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दुर्गंध, धूलि, धूम्र और प्रधूम (फ़्यूम्स) युक्त दूषित [[संवातन]] (वेंटिलेशन), अपर्याप्त प्रकाश, अत्यधिक शीत, ताप या [[आर्द्रता]], जनसंकुल (ओवरक्राउडेड) कोलाहलपूर्ण कार्यस्थल, अपर्याप्त भोजन, विश्रमा का अभाव, श्रांति (फ़टीग), क्लांति (स्ट्रेन) और दिन रात का घोर कष्टदायक परिश्रम, अल्पतम वेतन या मजदूरी, गंदी बस्तियों में असुविधापूर्ण आवास, शिक्षा, चिकित्सा, सामजिक न्याय और सुरक्षा का अभाव, आकस्मिक दुर्घटनाओं का बाहुल्य आदि के कारण श्रमिकों का जीवन साधारणत: दूभर रहता है। प्रति वर्ष अगणित ग्रामीण अपना परंपरागत कृषि कार्य और कुटीर उद्योग छोड़ बड़े उद्योगों में कार्य करने के लिए नगरों की गंदी बस्तियों में आ बसते हैं और कारखानों में अविराम परिश्रम कर अपना स्वास्थ्य गँवा देते हैं।
इन कष्टदायक और संकटापन्न परिस्थितियों में काम करनेवाले श्रमिकों की रक्षा के हेतु फैक्टरी अधिनियम के अंतर्गत फैक्टरियों के मुख्य निरीक्षक के अधीन सरकारी निरीक्षक, प्रमाणपत्रदाता सर्जन आदि नियुक्त किए गए हैं जो श्रमिकों को नाना प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त कराते हैं और उनकी सुरक्षा एवं कल्याण संबंधी नियमों का पालन कराते हैं। पूरे १४ वर्ष से कम आयुवाले बालकों को किसी भी कार्य पर नहीं नियुक्त किया जा सकता। १८ वर्ष पूरा कर चुकनेवाले वयस्क श्रमिक कहलाते हैं, इससे कम अवस्था के किशोर श्रमिक कहलाते हैं। किशोर श्रमिकों को शारीरिक स्वस्थता का प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है और एक बिल्ला धारण करना पड़ता है। कोई भी वयस्क श्रमिक सप्ताह में ४८ घंटे से अधिक और एक दिन में साधारणतया ९ घंटे से अधिक समय के लिए काम पार नही लगाया जा सकता। सप्ताह में एक दिन की पूरी छुट्टी और प्रतिदिन अधिक से अधिक पाँच घंटे तक काम कर चुकने पर कम से कम आधे घंटे का विश्राम दिया जाता है। धूति, धूम्र, प्रधूम तथा अत्यधिक शीतोष्णता और आर्द्रता आदि का समुचित प्रबंध कर परिवेश स्वास्थ्यानुकुल और सुविधापूर्ण बनाया जाता है। प्रकाश, संवातन (वेंटिलेशन) और जनसंकुलता संबंधी नियमों का पालन करना पड़ता है। हानि-लाभ-रहित लागत मूल्य पर जलपान, चाय, दूध, शर्बत, मिठाई, नमकीन, चबैना आदि खाद्य और पेय पदार्थों का प्रबंध किया जाता है। बड़ी फैक्ट्रियों में महिला श्रमिकों के दूध पीते बालकों के लिए उपचारिकाओं (नर्सों) की देख-रेख में उपचार गृह चलाए जाते हैं और ऐसे बालकों को दूध पिलाने के लिए श्रमिक माताओं को समय-समय पर छुट्टी दी जाती है। समुचित वेतन, सवेतन छुट्टियाँ तथा अन्य सुविधाएँ भी श्रमिकों को दी गई हैं।
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